25 फ़रवरी, 2019

डर कैसा







बचपन में शिक्षा मिली
 किसी से कभी न डरो
फिर भी न जाने क्यूँ ?
इससे पीछा नहीं छूटता |
जरा देर को लाईट जाए
मन में कम्पन होने लगता
कभी किसी की छाया दिखे
भूत नजर आने लगता  |
है यह कैसी मनोस्थिति
बाहर निकल नहीं पाती इससे
जितना दूर भागना चाहती
पर वहीं खड़ी रह जाती |
इतनी कमजोर  कभी न थी
 न जाने किसकी नजर लगी  
छोटी छोटी घटनाएं भी
बेचैन मुझे कर जाती हैं  |
डर का घेरा जकड़े  
रहता  इस कदर
दिन रात भय बना रहता    
कोई दुर्घटना  घटित होने का |
जब भी मन सशंक  होता है
 कुछ न  कुछ बुरा होता है
कैसे इससे खुद को बचाऊँ
यह  भ्रम नहीं होता  केवल |
किसी हद तक सच्चाई
 भी होती निहित इसमें
जब भी डर की  होती अनुभूति
 कुछ दुर्घटना हो कर रहती |
यही भाव मन से
 दूर न हो पाता
मुझे सहज भाव से
                                         जीने नहीं देता |

                                           आशा

24 फ़रवरी, 2019

प्यार कब बदला ?


बाल्यावस्था में प्यार का अर्थ
 नहीं जानते थे
पर माँ का स्पर्श पहचानते थे
वही उन्हें सुकून देता था
 दुनिया की सारी दौलत
बाहों में समेत लेता था
वय  बढ़ी मिले मित्र  बहुतेरे  
उनसे बढ़ा लगाव अधिक ही
 अपने से प्रिय अधिक वे लगाने लगे
तब घर के लोगों से अधिक  
हुआ   व्यवहार उनसे |
 नव यौवन ने सारी सीमाएं तोड़ी
समान वय भी पीछे छूटी
जिन्दगी फिर किसी के
 प्यार में पागल हुई है|
पर वे  मित्र या बहन भाई नहीं हैं
है अलग सा रिश्ता जिसे
अभी तक परखा नहीं है|
फिर भी आकर्षण बहुत है
 क्या है वह नहीं जानते ?
 प्यार प्रेम में बदल गया कब
 नहीं पहचानते |
आनेवाले समय में  क्या होगा 
होगी प्रीत किससे 
बैसाखी से या बिस्तर से 
किसको पता |

आशा

23 फ़रवरी, 2019

क्यूँ नहीं जाता ?






यादों में बस गया है
 वह दूर नहीं जाता
तन्हाइयों में आकर
 मुझे रोज सताता
यादों से है उसका
 इतना गहरा नाता
भूखे पेट रह कर भी
 कोई शौक नया
 वह  नहीं पालता
जज्बातों से घिरा वह
 है जिनसे उसका गहरा नाता
यही कमजोरी उसे
 देती है  मात सदा
 ना तो जीने देती   है
 ना ही  जुगाड़ कफन का  होता
सब कुछ यादों में
 सिमट कर रह जाता
एक विचार मन  में आता
है क्या वह मेरे लिए
 एक स्वप्न या कल्पना
 है  उसका अस्तित्व क्या ?
मेरे निजि  जीवन में |
                                             
                                              आशा

20 फ़रवरी, 2019

करार खो गया



पलक तक न झपकीं 
 आँखों के आंसू सूखे
बेचैनी बढ़ती जाती थी
  टी.वी  से निगाह न हटती |
बंद द्वार  दिल का 
 खुला जब धीरे से  
सूनी दूर सड़क पर 
कोई  नजर न आया  |
व्योम में  आदित्य की 
 रश्मियाँ आई थीं
पर न जाने क्यूँ थी  
 ऊष्मा उनकी भी फीकी  
 बेचैनी गजब की छाई |
करार  न था दिल को
ज्यों ज्योँ समाचार आगे बढे
 दिल दहलाने वाली ख़बरें
 थमने का नाम न लेतीं  |
मां ने अपना बेटा खोया 
  उसकी गोद उजड़ गई
बहन ने अपना भाई
 अब  राखी किसको बांधेगी|
पत्नि की मांग उजड़ गई 
  विरहन  मन में कसक भरी  |
नन्हों की समझ सेथा  बाहर
  वहाँ  क्या हुआ  था
अपने पापा को याद करते
 कहते वे  कब आएँगे |
उनके दिल का सुकून भी  
 कहीं गुम हो गया था
 उन लम्हों की याद में |
जब तिरंगे में लिपटी
 वीर सपूत की अर्थी वहां आई
 उसकी शहादत रह गई
 तस्वीर में सिमट कर|
उन सभी के दिलों का करार 
  लौट नहीं पाया
हर पल याद सताएगी
वीर की  शहादत की |
व्यर्थ नहीं जाएगी
 देश हित के लिए की गई
उन   यादों की भरपाई 
कभी न हो पाएगी |
 आशा