बचपन में शिक्षा मिली
किसी से कभी न डरो
फिर भी न जाने क्यूँ ?
इससे पीछा नहीं छूटता |
जरा देर को लाईट जाए
मन में कम्पन होने लगता
कभी किसी की छाया दिखे
भूत नजर आने लगता |
है यह कैसी मनोस्थिति
बाहर निकल नहीं पाती इससे
जितना दूर भागना चाहती
पर वहीं खड़ी रह जाती |
इतनी कमजोर कभी न थी
न जाने किसकी नजर लगी
छोटी छोटी घटनाएं भी
बेचैन मुझे कर जाती हैं |
डर का घेरा जकड़े
रहता इस कदर
दिन रात भय बना रहता
कोई दुर्घटना घटित होने का |
जब भी मन सशंक होता है
कुछ न कुछ बुरा होता है
कैसे इससे खुद को बचाऊँ
यह भ्रम नहीं होता केवल |
किसी हद तक सच्चाई
भी होती निहित इसमें
जब भी डर की होती अनुभूति
कुछ दुर्घटना हो कर रहती |
यही भाव मन से
दूर न हो पाता
मुझे सहज भाव से
जीने नहीं देता |
आशा