27 फ़रवरी, 2019

बहाना रोज का


है बहाना रोज का
रोज रोज देर से आना
झूठे सच्चे बहाने बनाना
एक ही  बात को
  कई बार दोहराना
फिर भी  मन को
दिलासा दिलाना
कुछ गलत नहीं किया है जाना
 अनजानें में हुई भूल को
सच्चा कह कर मन बहलाना
यही फितरत है उसकी
मिल कर बिछुड़ने की
 आदत है उसकी
फिर भी आदत को
सच का चोगा पहनाना
यही है मन का विचलन
उसने न जाना |
                                                आशा

नारी बेचारी





आखिर नारी बेचारी
जीवन था उसका अभिशाप
वह थी एक अवला शोषण का शिकार
रोज की हाथापाई कर गई सीमा पार
नौवत बद से बत्तर हुई |
एक दिन दो हाथ
गले तक जा पहुंचे जाने कहाँ छुपे थे 

साँसे थामने लगीं
ठहर गए आंसू आँखों में

पहले कहाँ कमी रही  उसमें
 बगावत न कर सकी थी
अब अन्याय के विरोध की 
  क्षमता जाग्रत हुई  एकाएक
उसका भी अस्तित्व है सोच कर 
 बगावत करने को हुई बाध्य 
अब सह न  पाएगी हिंसा और अत्याचार
है आज की नारी नहीं अब बेचारी

मनोबल जागा है उसका 
आत्मविश्वास भी कम नहीं
करते हैं वे भूल जो उसे अभिशाप मानते हैं 
|है वह माता पिता  का अभिमान
इस युग की है देन मन से सक्षम
 किसी बेटे से कम नहीं है
अब उसे भय नहीं किसी से 
ना ही किसी  पर  है बोझ 
ना  जीवन अभिशाप उसका 
है भविष्य उज्वल उन्नत
आज की स्वतंत्र नारी का 
जाग्रत तन मन हुआ है
स्वप्न पूर्ण हुआ है 
वह किसी से कम नहीं है 
ना ही जीवन अभिशाप उसका |
आशा

26 फ़रवरी, 2019

हर हाल में जीना है









हर हाल में जीना है
चाहे कैसा भी जीवन हो
मन को संयत रखना है
रोने धोने से लाभ क्या |
यदि किसी कठिनाई
 से बचना हो
बड़ी बीमारी से दूरी बना कर
नियमित जीवन जीना  है |
 छोटी आपदाओं से क्या  डरना 
यूँ ही  सहन हो जाती है
यही तो जीवन की
है सच्चाई |
जिसने भय पाला मन में
उसने ही जंग हारी जीवन की  
अपना बोझ खुद को ही ढोना है
यही परम सत्य की सीमा है|
कभी किसी ने जीना न सिखाया
समय  के साथ  बढ़ना न सिखाया
 अब तो  हम पिछड़ गए
 आज की दौड़ में|
मान लिया है यही नियति  हमारी
जीत कर भी हार गए हैं
 अपना प्रारब्ध जान गए हैं
अब मलाल नहीं होता
 ऐसी जिन्दगी जीने में |
आशा

25 फ़रवरी, 2019

डर कैसा







बचपन में शिक्षा मिली
 किसी से कभी न डरो
फिर भी न जाने क्यूँ ?
इससे पीछा नहीं छूटता |
जरा देर को लाईट जाए
मन में कम्पन होने लगता
कभी किसी की छाया दिखे
भूत नजर आने लगता  |
है यह कैसी मनोस्थिति
बाहर निकल नहीं पाती इससे
जितना दूर भागना चाहती
पर वहीं खड़ी रह जाती |
इतनी कमजोर  कभी न थी
 न जाने किसकी नजर लगी  
छोटी छोटी घटनाएं भी
बेचैन मुझे कर जाती हैं  |
डर का घेरा जकड़े  
रहता  इस कदर
दिन रात भय बना रहता    
कोई दुर्घटना  घटित होने का |
जब भी मन सशंक  होता है
 कुछ न  कुछ बुरा होता है
कैसे इससे खुद को बचाऊँ
यह  भ्रम नहीं होता  केवल |
किसी हद तक सच्चाई
 भी होती निहित इसमें
जब भी डर की  होती अनुभूति
 कुछ दुर्घटना हो कर रहती |
यही भाव मन से
 दूर न हो पाता
मुझे सहज भाव से
                                         जीने नहीं देता |

                                           आशा

24 फ़रवरी, 2019

प्यार कब बदला ?


बाल्यावस्था में प्यार का अर्थ
 नहीं जानते थे
पर माँ का स्पर्श पहचानते थे
वही उन्हें सुकून देता था
 दुनिया की सारी दौलत
बाहों में समेत लेता था
वय  बढ़ी मिले मित्र  बहुतेरे  
उनसे बढ़ा लगाव अधिक ही
 अपने से प्रिय अधिक वे लगाने लगे
तब घर के लोगों से अधिक  
हुआ   व्यवहार उनसे |
 नव यौवन ने सारी सीमाएं तोड़ी
समान वय भी पीछे छूटी
जिन्दगी फिर किसी के
 प्यार में पागल हुई है|
पर वे  मित्र या बहन भाई नहीं हैं
है अलग सा रिश्ता जिसे
अभी तक परखा नहीं है|
फिर भी आकर्षण बहुत है
 क्या है वह नहीं जानते ?
 प्यार प्रेम में बदल गया कब
 नहीं पहचानते |
आनेवाले समय में  क्या होगा 
होगी प्रीत किससे 
बैसाखी से या बिस्तर से 
किसको पता |

आशा