03 मार्च, 2019

अभिनंदन





हे अभिनन्दन वीर तुम्हारा स्वागत 
 ओज टपकता मुख मंडल पर   
दिल से देते आशीष तुम्हें 
हम ‘अभिनन्दन ‘
करते हैं तुम्हारा स्वागत  
शीश झुकाते
वंदन करते भारत मां के
 वीर  सपूत   ‘अभिनन्दन ‘  का
हर भारत वासी का जज्बा
 काश  तुम्हारे जैसा होता
गर्व से देश का सर उन्नत कर देता
धन्य है वह जननी
 जिसने   पाया तुम जैसा  लाल
रोम रोम हुआ गौरान्वित माँ का  
 ऐसा बेटा  अभिनन्दन आया  
 नमन  करते नहीं थकते ' हे अभिनन्दन ‘ 
तुम्हारी देश की सुरक्षा के प्रति 
 कर्ताव्य परायणता के बोध को देख 
पलक तक न झपकाई
 तुम्हारी एक झपक पाने को
बाघा बोर्डर पर  टिकी रहीं  नजरें
 वीर सपूत के आने तक |

आशा

02 मार्च, 2019

पूर्णाहुति


सकारात्मक सोच होगा 
आत्मबल भी कम नहीं 
  पूर्ण कार्य जब हो जाएगा
सफलता कदम चूमेगी तभी
यही है प्रमुख   उद्देश्य हमारा
 सफल होने का राज हमारा
बहुत महनत से जुटे रहते
तभी सफल हो पाते उसमें
कभी हार नहीं मानते
अधूरा छोड़ते नहीं
हिम्मत से भरे रहते 
आत्मबल क्षीण न होता
कार्य  जब तक पूर्ण न हो जाएगा
मन प्रमुदित होने लगता
जब होती पूर्णाहुति उसकी
दृढ प्रतिज्ञा ही आयगी काम हमारे
सफल  मनोरथ हो जाएगा 
माना सफलता है बहुत ऊंचाई पर 
पर भय से क्या लाभ 
जब सफलता को हम छू लेंगे 
उन्नत होगा भाल |
आशा 

01 मार्च, 2019

हाईकू( अभिनन्दन )

1-फहरा कर
छाँव देता तिरंगा
देता सुकून
2-उन्नत शीश
गौरव  भर देता
होता विशेष
3-तिरंगा झंडा
रंग का है  प्रभाव
दिखाई देता
4- मित्र नहीं थे
होली खून की हुई
नदियाँ बहीं
५--प्रेम से दूरी 
पनापा अलगाव
मित्रता सुप्त
६--केवल अपना
पड़ोसी धर्म कैसा
जान न पाया  
७-तुम्हारा स्वप्न
न अधूरा रहेगा
होना है पूर्ण
८-अभिनन्दन
देश की धरती पर 
होता स्वागत

आशा














27 फ़रवरी, 2019

बहाना रोज का


है बहाना रोज का
रोज रोज देर से आना
झूठे सच्चे बहाने बनाना
एक ही  बात को
  कई बार दोहराना
फिर भी  मन को
दिलासा दिलाना
कुछ गलत नहीं किया है जाना
 अनजानें में हुई भूल को
सच्चा कह कर मन बहलाना
यही फितरत है उसकी
मिल कर बिछुड़ने की
 आदत है उसकी
फिर भी आदत को
सच का चोगा पहनाना
यही है मन का विचलन
उसने न जाना |
                                                आशा

नारी बेचारी





आखिर नारी बेचारी
जीवन था उसका अभिशाप
वह थी एक अवला शोषण का शिकार
रोज की हाथापाई कर गई सीमा पार
नौवत बद से बत्तर हुई |
एक दिन दो हाथ
गले तक जा पहुंचे जाने कहाँ छुपे थे 

साँसे थामने लगीं
ठहर गए आंसू आँखों में

पहले कहाँ कमी रही  उसमें
 बगावत न कर सकी थी
अब अन्याय के विरोध की 
  क्षमता जाग्रत हुई  एकाएक
उसका भी अस्तित्व है सोच कर 
 बगावत करने को हुई बाध्य 
अब सह न  पाएगी हिंसा और अत्याचार
है आज की नारी नहीं अब बेचारी

मनोबल जागा है उसका 
आत्मविश्वास भी कम नहीं
करते हैं वे भूल जो उसे अभिशाप मानते हैं 
|है वह माता पिता  का अभिमान
इस युग की है देन मन से सक्षम
 किसी बेटे से कम नहीं है
अब उसे भय नहीं किसी से 
ना ही किसी  पर  है बोझ 
ना  जीवन अभिशाप उसका 
है भविष्य उज्वल उन्नत
आज की स्वतंत्र नारी का 
जाग्रत तन मन हुआ है
स्वप्न पूर्ण हुआ है 
वह किसी से कम नहीं है 
ना ही जीवन अभिशाप उसका |
आशा

26 फ़रवरी, 2019

हर हाल में जीना है









हर हाल में जीना है
चाहे कैसा भी जीवन हो
मन को संयत रखना है
रोने धोने से लाभ क्या |
यदि किसी कठिनाई
 से बचना हो
बड़ी बीमारी से दूरी बना कर
नियमित जीवन जीना  है |
 छोटी आपदाओं से क्या  डरना 
यूँ ही  सहन हो जाती है
यही तो जीवन की
है सच्चाई |
जिसने भय पाला मन में
उसने ही जंग हारी जीवन की  
अपना बोझ खुद को ही ढोना है
यही परम सत्य की सीमा है|
कभी किसी ने जीना न सिखाया
समय  के साथ  बढ़ना न सिखाया
 अब तो  हम पिछड़ गए
 आज की दौड़ में|
मान लिया है यही नियति  हमारी
जीत कर भी हार गए हैं
 अपना प्रारब्ध जान गए हैं
अब मलाल नहीं होता
 ऐसी जिन्दगी जीने में |
आशा