रूप तुम्हारा महका महका
जिस्म बना संदल सा
क्या समा बंधता है
जब तुम गुजरती हो उधर से |
जिस्म बना संदल सा
क्या समा बंधता है
जब तुम गुजरती हो उधर से |
हजारों यूँ ही मर जाते हैं
तुम्हारे मुस्कुराने से
जब भी निगाहों के वार चलाती हो
परदे की ओट से|
देती हो जुम्बिश हलकी सी जब
देती हो जुम्बिश हलकी सी जब
अपनी काकुल को
उसका कम्पन और
लव पर आती सहज मुस्कान
निगाहों के वार देने लगते
सन्देश जो रहा अनकहा|
कहने की शक्ति मन में छिपे
शब्दों की हुई खोखली
फिर भी हजारों मर जाते हैं
तुम्हारे मुस्कुराने से |
इन अदाओं पर
लाख पहरा लगा हो
लाख पहरा लगा हो
कठिन परिक्षा से गुजर जाते हैं
बहुत सरलता से |
आशा