14 जनवरी, 2020

पिपासा



खोले पट अंतस के
ज्ञानचक्षु स्वतः खुल गए
घटनाएं आसपास की
देती रहीं दस्तक मन के कपाट पर
झांक कर उन्हें देखा
 पर आधे मन से
धीरे से मन को समझाया
झाड़ा पोंछा कौना कौना
बड़ी मुश्किल से उसे मनाया
न जाने क्यूँ ?नजदीक जाकर भी
स्वीकारने से डरता रहा
दुभिदा में उलझा रहा
क्या करूं  बात किसकी  मानू  
ज्ञान चक्षु की या मन की   
निर्धारित  न कर पाया
था प्रभाव विज्ञान का
मन  झुकने लगा
 ज्ञान चक्षुओं की ओर
कहा उसका ही माना
मन में जागी ललक  को
 पूरी शांत न कर पाया फिर भी
उसी ओर खींचता  चला आया
ज्ञान पिपासा ऐसी जागी
 ना खुद सोई ना सोने दिया
जब तक निष्कर्ष पर ना पहुंचूं
उस की थाह न पाऊँ
जागी क्षुधा शांत  कैसे करूँ
है  इतनी कठिन  डगर
 यदि पार उसे न कर पाया
 गंतव्य तक न पहुंच पाया  
पिपासा अधूरी  रही यदि  
मन की शान्ति खो जाएगी
जीवन में कुछ न किया
बारम्बार संतप्त मन से
इधर उधर भटकाएगी
प्यास अधूरी रह जाएगी |
आशा

13 जनवरी, 2020

कुहासा


भयंकर  सर्दी  का मौसम
चारो ओर बादल ही बादल
धुंद इतनी कि
 हाथों को हाथ नहीं सूझते
जरा  दूर  खड़े वाहन भी
 दिखाई न दे पाते
यदि यही हाल रहा मौसम का
बड़े हादसे हो जाते
पूरे पेपर भरे हादसों से
मन में हलचल पैदा करते
नन्हें बच्चे बेहाल होते ठीठुरते
गर्म  कपड़े पहन कर   
 शाला को बेमन से जाते
यदि छुट्टी घोषित हो जाती
मन ही मन ख़ुशी मनाते
बड़ों का भी हाल बुरा है
कुहासे से बच पाने के लिए
किसी तरह गाड़ी से जाते
कहीं अगर अलाव दीखता
 कुछ समय ठहरने  का
मन भी होता  
पर घड़ी देख भूल कुहासा
 वाहन की गति बढ़ाते
समय की कीमत क्या होती है
मानो वही पहचानते
किसी को रोकाटोकी का
अवसर नहीं देना चाहते
  यदि किसी ने कुछ बोला
कुहासे का वास्ता देते
और क्षमा मांग लेते |
आशा

11 जनवरी, 2020

मन बचपन का




कोरे कागज़ सा मन बचपन का
भला  बुरा न समझता
ना  गैरों का प्यार
जो  होता मात्र दिखावा |
दुनियादारी से दूर बहुत
 मन उसका कोमल कच्चे धागे सा
जितना सिखाओ सीख  लेता  
उसी का अनुकरण करता |
गुण अवगुण का भेद  न जान   
अपने पराए में भेद न करता  
 मीठे बोल उसे करते आकृष्ट     
 खीचा चला जाता उस ओर|
जिसने भी बोले  मधुर बोल
 उसी को अपना मानता
 होती वही प्रेरणा उसकी
उसी का  अनुगमन करता |
मन तो मन ही है
 बचपन में होता चंचल जल सा 
स्थिर नहीं रहता
जल्दी ही बहक जाता है |
जरा सा दुलार उसे अपना लेता
माँ से बड़ा जुड़ाव है रखता  
 उसमें  अपनी छाया पा
  मन मेरा  गर्व से उन्नत होता |
आशा



10 जनवरी, 2020

हिन्दी



हिन्द के माथे की बिंदी
दमक रही  ऐसी कि
  उस की शोभा पर
  नजर नहीं टिकती
उसके आगे अब तो
 सब की रंगत फीकी
सोलह सिंगार अधूरे
 लगते उसके बिना
तभी तो बनी सिरमोर हिन्दी
 यहाँ सभी भाषाओं की
हमें है गर्ब अपनी
 भाषा हिन्दी पर
है सरल बौधगम्य
कठिन नहीं व्याकरण इसकी |
                                     आशा