22 जनवरी, 2020

गणतंत्र दिवस

हुए स्वतंत्र सन सैतालिस में
सन पचास में गणतंत्र बना
स्वतंत्र देश में पालनार्थ
संविधान लागू हुआ |
वह दिन था छ्ब्बीस जनवरी
 इस दिन को याद किया जाता है
जश्न मनाया जाता है
तिरंगा फहराया जाता है |
हम मनाते हर वर्ष
गणतंत्र  दिवस उत्साह से
देश भक्ति के गीत गाते
झंडा फहराते बड़ी शान से |
सेना के तीनों अंग दिल्ली में
गुजरते मंच के सामने से
सलामी तिरंगे को देते
सर उठा अभिमान से |
कदम से कदम मिला कर चलते
देश भक्ति के गीत गाते
तत्पर दिखते रणबाकुरे
देश हित में आहुति के लिए |
झांकियां विविध प्रदेशों की
इस उत्सव में भाग लेतीं
नयनाभिराम दृश्य होते
कुछ न कुछ सन्देश देते |
स्कूली बच्चे छोटे बड़े
तरह तरह के करतब करते
नाचते थिरकते गुजरते
तिरंगे को प्रणाम करते |
हम स्वतंत्र देश के वासी 
रक्षा  करते इसकी 
हो अजर अमर गणतंत्र हमारा 
यही कामना रहती |
देश हमारा सबसे प्यारा 
सारे जग से न्यारा  
गर्व से सर उन्नत होता
जान कर कर्तव्य हमारा |
आशा

21 जनवरी, 2020

हाथ में माचिस की तीली


 

  हाथ में माचिस की तीली लिए 
 बच्चा खेल रहा आँगन में
अरे यह किसने दी है
इसके हाथ में  |
 आग लगा देती है 
छोटी सी चिगारी 
हाथ में माचिस की तीली  हो 
और यदि उसे जलाएं
छोटी सी लौ  निकलती है उससे
कुछ क्षण भी नहीं लगते
 सब ख़ाक होने में |
ऐसे ही मन की उथलपुथल
 स्थिर नहीं रख पाती है
भावनाओं का उतार चढ़ाव
 सर चढ़ कर बोलता है|
तभी  भावनात्मक चिंगारी
 आग लगाती है
लोगों की भीड़ बदल जाती
 भीड़ तंत्र में|
जब जीवन में अलगाव की
अधिकता होती  है
सब कुछ जलकर
 भस्म हो जाता है
 एक ही झटके में |

आशा

16 जनवरी, 2020

कटते नहीं दिन रात



 कटते नहीं दिन रात
समय गुजरा धीरे से
समय काटना हुआ दूभर
जिन्दगी हुई भार अब तो
मिलेगी इससे निजाद कब |
आँखें पथराईं अब तो
समय काटे नहीं कटता नहीं
ना ही दिन और रात
कितनी प्रतीक्षा और करनी होगी
कोई बतलाता नहीं
ना ही भविष्यवाणी करता
कितनी और प्रतीक्षा करूं
दिल पर भार लिए जी रही हूँ
क्या अब खुशहाल जिन्दगी
का कोई भी पल
नहीं है भाग्य में मेरे
अब तो हार गई हूँ
इस जिन्दगी को ढोते ढोते
क्या लाभ ऐसी जिन्दगी का
जो बोझ बन कर रह गई है सब पर
कोई कार्य नहीं हो पाता बिना बैसाखी के
कैसे समझाऊँ अपने मन को
कहना बहुत सरल है
शायद प्रारब्ध में यही है
पर सच्चाई तो यही है
जन्म मरण किसी के हाथ में नहीं है |
आशा




आशा

15 जनवरी, 2020

अंधा बांटे ???





पांच बरस तक  सभी कार्य रहे  ठन्डे  बसते में |किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी |जिसने भी आवाज उठाई उसे ही दवा दिया गया |पर चुनाव आते ही तरह तरह की घोषनाएं की जाने लगीं |वे सब होती लोक लुभाबनी |सब सोचते अब तो हमारा हर कार्य पूर्ण होगा  हमारी सरकार होगी |हमारी समस्याएँ दूर करेगी|
अब तो बिजली का बिल भी नहीं आएगा |किसानों को भी मुआवजा मिलेगा |झूठे सपनों में जीते लोग अपनों को बोट देने का मन बनाने लगे |पर जब नई सरकार का गठन हुआ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ |
चन्द लोग ही बंदरबाट का आनंद उठा पाए |जिस लाभ की बात होती उन तक ही पहुँच कर
रुक जाता |मानो अंधा बांटे रेबडी फिर फिर अपनों को देने की बात की सच्चाई पर मोहर लग रही हो |
आशा