12 फ़रवरी, 2020

लिखना पढ़ना है कठिन




  एक समय था ऐसा जब केवल खेल सूझता था
 किताब छूने का मन न होता था
है कठिन बहुत लिखना पढ़ना
लिखने  से कोसों दूर भागती थी |
 जब से  दुनिया देखी बाहर की
महत्व समझ में आया लिखने पढ़ने का
लगा  अभी भी देर नहीं हुई है
शिक्षा प्राप्ति  की कोई उम्र नहीं  निर्धारित |
जितनी नजदीकियां होंगी उससे सफलता हांसिल होगी
केवल फल की इच्छा रख कर कोई  
शिक्षा के पायदान के उच्च शिखर पर
बिना प्रयास  यूँ ही  पहुँच नहीं  पाता |
है आवश्यक दृढ इच्छा शक्ति और लगन
कुछ पाने के लिए मौज मस्ती त्याग कर
एक ध्येय ले कर चलने से चूमती कदम सफलता
कागज़ कलम किताब होते अति आवश्यक |
बीता समय लौट नहीं पाया
 वर्तमान का पूर्ण उपयोग किया
 आने वाले कल की राह न देखी
पर देर से ही  जब सही मार्ग अपनाया |
एकाग्र  चित्त हो  लिखा पढ़ा याद किया
मस्तिष्क में संग्रहित किया
जो भी नया लिखा बारम्बार दोहराया
तभी शिक्षा का पूरा लाभ उठा पाया  |

                                               आशा

10 फ़रवरी, 2020

पराग



 
                                                          पराग कण होते  आकर्षक
मकरंद में भीग भीग जाते  
 रंग महक उनकी ऐसी कि
स्वतः कीट पतंगे होते आकर्षित |
  खिले अधखिले  पुष्पों  पर
बैठ गुनगुनाते गुंजन करते  
कभी पास आते कभी दूरी बनाते
आसपास चक्कर लगाते |
 पराग तक पहुँचना चाहते
पराग कणों तक अपनी पहुँच में  
होते सफल जब कोशिश में
 अपार प्रसन्न होते पुष्पों के आलिंगन में |
  झूमते  फूलों की बहार  संग
आसपास ही नर्तन करते मंडराते
परागण में सहायक होते 
 क्रियाकलाप  जब पूर्ण होता
 फलों  की उत्पत्ति होती|  
फल के बीजों से नए पोधे जन्म लेते
कीट पतंगे पराग कण और
मंद गति से  बहती  बयार
अहम् भूमिका निभाते पौधों की उत्पत्ति में | 
आशा

04 फ़रवरी, 2020

पदचाप



 हर आहट पर निगाहें
टिकी रहतीं दरवाजे पर
टकटकी लगी रहती
हलकी सी भी पद चाप पर
 चाहे आने की गति
 धीमी हो कितनी भी
मैं पहचानता हूँ
पदचाप तुम्हारे कदमों की  
चूड़ियों की खनक
पायलों  की रुनझुन
धीरे से झाँक  इधर उधर
देना दस्तक दरवाजे पर
तुम्हारे आने का
 एहसास करा देता है मुझे
पर  इंतज़ार की घड़ी
समाप्त  नहीं होती है
 तुम्हारी शरारत को भी जानता हूँ
परदे की ओट में छिप कर
पल्ले को धीमें से लहरा कर
 चूड़ियाँ का खनकना धीमें से
 पायल बजने का एहसास 
देता है गवाही तुम्हारी पदचाप की
मन मयूर नर्तन करने लगता है
तुम्हारे आने की आहट से  | 

आशा

03 फ़रवरी, 2020

पंखुड़ी


बगिया में फूलों की क्यारी
महकी सारी फुलवारी
 ध्यान गया  जब सुगंध पर  
हुआ  उत्फुल्ल मन  
देखीं पुष्पों से लदी डालियाँ  
 देखे फूल देखी अधखिली कलियां
झांकती अनमोल पंखुड़ी उनमें से
जो मकरंद की रक्षा करतीं
 मंद पवन के साथ बह चली
फूलों की मन मोहक सुगंध 
मैं उस ओर बेंच पर 
कब जा  बैठी याद नहीं   
 मन लुभावन रंग बिरंगे 
फूल खिले बड़े सुन्दर   
आकर्षित हुए तितली और भ्रमर भी
बारम्बार मंडरा  रहे वे आसपास
स्पंदन से उनके 
 बढ़ी कलियों में हलचल
भौरे  तो इस हद तक बढ़ गए
स्वतः बंद किया खुद को 
पुष्पों की पंखुड़ियों के आलिंगन में
मकरंद का पान करने के लिए
बंधक होना भी स्वीकार किया
पंखुडियों की बाहों में दुबक   
रहा बंद तब  तक
जब कली फूल बन गई
तभी बंधन मुक्त हो पाया
जब मकरंद से  मन भरा
अलग हो चल दिया
दूसरे रंग बिरंगे पुष्पों की बाहों में
उनकी  पंखुड़ियों की पनाह में
होता इतना आकर्षण उन में
मोह नहीं छूटता अलग हो नहीं पाता
 रंग बिरंगे प्यारे से  
 पुष्पों की  पंखुड़ियों  से |
आशा