03 मार्च, 2020

अभिसारिका




 पलक पसारे बैठी है
 वह तेरे इन्तजार में
हर आहट पर उसे लगता है
कोई और नहीं है  तेरे सिवाय 
हलकी सी दस्तक भी
दिल के  दरवाजे पर जब होती 
 वह बड़ी आशा से देखती है
 तू ही आया है 
मन में विश्वास जगा है
चुना एक फूल गुलाब का
 प्रेम के इजहार के लिए
      काँटों से भय नहीं होता
स्वप्न में लाल  गुलाब देख
 अजब सा सुरूर आया है 
वादे वफ़ा  का नशा
 इस हद तक चढ़ा है कि
उसे पाने कि कोशिश  तमाम हुई है
चर्चे गली गली में सरेआम हो गए
पर उसे इससे कोई आपत्ती नहीं
मन को दिलासा देती है
तेरी महक से पहचान लेती है
आशा

01 मार्च, 2020

अब क्या सोचना


जीवन बढ़ता जाता 
 कन्टकीर्ण मार्ग पर
 अकेले चलने में
 दुःख न होता  फिर भी |
क्यूँ कि आदत सी
 हो गई  अब तो
  सब कुछ  झेलने की
 अकेले  ही  रहने  की  |
कोई नहीं अपना
 सभी गैर लगते हैं
एक निगाह प्यार भरी
 देखने को तरसते हैं |
कुछ  कहने सुनाने  का 
अर्थ नहीं किसी से
ना ही किसी को  हमदर्दी 
मेरे मन को लगी ठेस से |
तब क्यूँ अपना समय
 व्यर्थ  बर्बाब करूँ
नयनों से मोती से 
  अश्कों को  बहाऊँ  |
गिरते पड़ते सम्हलते लक्ष्य  तक
 पहुँच ही जाऊंगी
अभी तो साहस शेष है
 दुःख दर्द को  सहन कर पाउंगी  |
यदि कोई अपना हो तब
 दर्द भी बट जाता है
अपने मन की बात कहने से 
मन हल्का हो जाता है |
 अब कंटक कम  चुभते हैं
 घाव उतने  गहरे नहीं उतरते  
 जितना गैरों का कटु भाषण
 मन विदीर्ण  करता  |
आशा

 
  

28 फ़रवरी, 2020

इंतज़ार


हरे पीले रंग सजाए थाली में
 श्याम न आए आज अभी तक
 रहा इन्तजार उनका दिन और रात
निगाहें टिकी रहीं दरवाजे पर |
हुई उदास छोड़ी आस उनके आने की
पर आशा  रही शेष  मन के किसी कौने में
 शाम तक उनके आने की
अपना वादा निभाने की |
टेसू के फूल मंगा  रंग बनाया
गुलाल अवीर भी नहीं भूली
कान्हा का झूला  खूब सजाया
फूलों की होली की की तैयारी |
 कहीं कोई कमी न रह जाए
गुजिया पपड़ी और मिठाई
दही बड़े से काम चलाया
नमकीन बाजार से मंगाया |
 उनके न आने से उदासी बढ़ने लगी   
सभी तैयारी फीकी लगने लगी
याद हमारी  शायद उन्हें खीच लाएगी
 मन के किसी कौने से आवाज उठने लगी |
हलके से हुई आहट पट खुलने की
जल्दी से खोला दरवाजा
पा कर  समक्ष उन को
प्रसन्नता का रहा न ठिकाना |
बड़े उत्साह से जुटी शेष काम में
होली का रंग हुआ दो गुना
बिना उनके घर घर नहीं लगता था
अब त्यौहार त्योहार सा लगने लगा  |
आशा

27 फ़रवरी, 2020

जीवन का सफर







जब दुनिया में आया
मैं गला फाड़ कर रोया
जगत हंसा खुशियाँ मनी
थाली बजी मिठाई बटी |
बचपन खेल कूद में बीता
पढ़ना लिखना सीखा
जब हुआ युवा गंभीरता आई
जिम्मेदारी खूब निभाई |
वानप्रस्थ आते ही
भविष्य की चिंता सताई
उम्र पूरी होने को आई
जाने कब बुलावा आ जाए |
सुबह एक दिन जागा नहीं
 ऐसी गहरी नींद में सोया
मुझे हिलाया डुलाया
पर हिल् तक न पाया |
अपने पराए करने लगे रुदन
बिस्तर छोड़ जमीन पर लिटाया
चार बांस की ठठरी  पर लिटा
मुक्ति धाम तक पहुंचाया |
अंतिम विदाई की बेला में
चिता पर आसीन किया
घृत से पूरा नहलाया
चिता को भी खूब सजाया |
जब अग्निसंस्कार हुआ
धूं धूं कर जल उठी चिता 
पञ्च तत्व से बना शरीर
उसमें ही जा मिला |
अकेला  ही आया था
अब अकेले ही जाना है
 दुनिया की है रीत यहीं सब छूटे
मेरा तेरा कोई नहीं इसे ही निभाना है |
आशा