13 अप्रैल, 2020

आत्म मंथन






हंसने हंसाने के लिए
कोई तो बहाना  चाहिए
जिन्दगी है चार दिनों की
यह  नहीं भूलना  चाहिए |
आए थे संसार में  रोते हुए
 ज्यादा जीवन बिताया कभी
हंसते कभी सिसकते हुए
अब बारी आई  भक्ति में लीन होने की |
 वह भी लगती है असंभव
मन उलझा रहता सदा
 मद मत्सर  माया मोह में
 दूरी बनाने का कोई उपाय नहीं|  
जब आत्म मंथन किया
अपने गुण दोषों को परखा
पाई हजार त्रुटियाँ  खुद में
पर स्वीकार न कर पाई
यही   कमी रही मुझमें |
जिससे बच  नहीं पाई
इस गरूर में खोई रही 
मुझे कोई क्या समझाएगा
खुद को पूर्ण  समझती रही |
अब पश्च्याताप  से क्या लाभ
जिन्दगी की शाम आई
बिना आत्म मंथन के
बिना हरी के  भजन के  |
अब अंत समय आया है
भगवान की कैसी माया है
जान नहीं पाई अब तक
 कितना खो कर  क्या पाया है|
                             आशा    

12 अप्रैल, 2020

समय का अभाव न हो जब




 

 था लंबा  अवकाश ऑफिस जाना न था
बैठे बैठे उकता  रहा था  
कोई काम नजर नहीं आ रहा था
सोचा देखूं चौके में क्या हो रहा है ?
देखा सिंक का नल खुला था
बरतन जल से आपस में होली खेल रहे थे
एक कढ़ाई बहुत गंदी थी
सोचा क्यूँ न इसे साफ कर दूं
कुछ तो समय का सदउपयोग करू
 ऐसे तो समय नहीं मिलता
 व्यस्तता भरी जिन्दगी में
 जीवन की आपाधापी में
 समय का  अभाव सदा रहता 
मैंने उसे उठाया तेज  गर्म किया  
पानी और सर्फ लिया
स्काच ब्राईट से पूरा दम लगा कर रगड़ा
चमकाया उसे पूरे मनोयोग से 
कहा उनसे  देखो कैसे चमक रही है
 मानो है सध्य स्नाना मुस्कुराती  युवती
लौट  आया है योवन उसका
पर अन्य बर्तन भी  देख रहे थे यह मंजर
उनका प्रश्न था यह भेदभाव क्यूँ  ?
मैं अकेला इतना सब नहीं कर पाता 
बाई को भी न आना था 
असमंजस में था क्या करूं
पत्नी से मांगी सहायता
  उसका साथ पा
 बर्तनों की सफाई  का कार्य  सम्पन्न किया
 थे वे बहुत खुश  चमचमा रहे थे
अपने को नया नवेला जान
  दुआएं दे रहे थे 
आपस में चर्चा कर रहे थे |
जानना चाहोगे क्या कह रहे थे ? वे कह रहे थे
 “जैसे  जीवन पर्यंत साथ निभाने का वादा
 कियी है तुमने अपनी जीवन संगिनी से  
हमारा भी वादा है तुमसे जब तक जियेंगे
 तुम्हारा साथ निभाएंगे पूरी शिद्दत से
कभी न वादा तोड़ेगे अपनी  कसम से” |
आशा

एकता



 

एकता –
खिंच रही  थी घर में दीवार |पर बटवारा होता कैसे संभव |अचानक बटवारा  रूकने के पीछे छिपे कारण का खुलासा नहीं हो पाया था  तब |एक दिन सब आँगन में बैठ बातें कर रहे थे |
उस दिन सच्चाई सामने आई |घर में दो सदस्य थे ऐसे जो पूर्ण रूप से आश्रित थे | बिलकुल असमर्थ
कोई काम न कर पाते थे |बुढापे से जूझ रहे थे |प्रश्न था कौन उन्हे सम्हाले ?तब एक ने सलाह दी थी क्यूँ न इन्हें वृद्ध आश्रम में पहुचा दें |मिल कर आ जाया करेंगे |पर छोटे का मन नहीं माना |बात वहीं समाप्त हो गई थी तब |
तब से रोज लड़ाई होती थी उन की देखरेख  के लिए |जब अति हो गई फिर से बटवारे की बात उठी |दरार दिलों में और बढ़ी  |ललक अलग  रहने  की जागी| फिर बात वहीं आकर अटकी उनकी देखरेख कौन करे ?
अचानक कोरोना का कहर की दहशत से न उबार पाए आसपास के एकल परिवार | पर उनके परिवार में एकता रंग लाई एक दूसरे की  मदद से कठिन समय से उभरने की शक्ति काम आई |
     सभी ने वादा किया अब अकेले रहने की कभी न सोचेंगे |एक साथ रहेंगे कठिनाई का सामना आपसी समन्वय से  बहादुरी से करेंगे |
                     आशा