29 अप्रैल, 2020

शोहरत





 
 फैली खुशबू हिना सी चहुओर
होने लगी शोहरत दिग्दिगंत में
जिधर देखा उधर एक ही चर्चा  थी शोहरत की उसकी
जागी उत्सुकता जानने की
 कैसे पहुंची वह शोहरत के उस मुकाम तक
जानने को हुई आतुर जानना चाहा  सत्य
पहले तो  सही बात बताने को हुई  नहीं राजी
पर जब मैंने पीछा नहीं छोड़ा की बहुत मन्नत उससे
फिर हलकी सी मुस्कराहट उसके  चहरे पर आई
 बोली मैं तो तुम्हारी परिक्षा ले रही थी
फिर खोली उसने मन की गठरी
तुम में है कितनी शिद्दत कुछ नया करने की
हर उस बात को आत्मसात करने की
जिसे सीखने की है ललक   तुम्हारे  मन में  
 यूँ ही तो  समय काटने को पूंछे है तुमने प्रश्न
 मेरा उतारा चेहरा देख  मेरी उत्सुकता जान
 वह हुई उद्धत मन की बात बताने को
कहने लगी किसी कार्य से कभी हार नहीं मानी उसने  
असफल भी हुई पर मोर्चा कभी न छोड़ा उसने  
फिर दुगनी मेहनत से उसी कार्य में जुटी रही  
जब सफलता हाथ आई तभी शान्ति मन में आई
 प्रशंसा पा  खुद पर कभी ना आया  अभिमान  
 उसने दिया सफलता का श्रेय सदा
 अपने सहभागियों को भी भरपूर  दिया
 गर्व से रही कोसों दूर आलस्य को दी तिलांजलि
दूसरों ने यही कहा कितनी विनम्रता भरी है
है सच्ची हकदार शोहरत पाने की  
तभी उसकी  शोहरत को पंख लगे ऊंची उड़ान भरी
और  फैली  दिग्गिगंत में |
आशा


27 अप्रैल, 2020

आइना




है वह आइना तेरा
हर अक्स का हिसाब रखता है
तू चाहे याद रखे न रखे
उसमें जीवंत बना रहता है
बिना उसकी अनुमति लिए
जब बाहर झाँकता है
चाहे कोई भी मुखौटा लगा ले
बेजान नजर आता है
यही तो है कमाल उसका
हर भाव की एक एक लकीर
उसमें उभर कर आती है
तू चाहे या न चाहे
मन की हर बात वहाँ पर
  तस्वीर सी छप जाती है
चाहे तू लाख छिपाए
तेरे मन के भावों की
परत परत खुल जाती है
दोनों हो अनुपूरक
एक दूसरे के बिना अधूरे
है वह आइना तेरे मन का
यह तू क्यूँ भूला |

आशा

25 अप्रैल, 2020

फिक्र




     हो किस बात की फिक्र
मन सन्तुष्टि से  भरा हुआ है
 कोई इच्छा नहीं रही शेष
ईश्वर ने भरपूर दिया है |
है वह इतना मेहरवान कि
कोई नहीं गया भूखा मेरे द्वार से
होती चिंता चिता के सामान
पञ्च तत्व में मिलाने का
एहसास भी नहीं होता
कोई कष्ट नहीं होता |
जब जलने लगती चिता
आत्मा हो जाती स्वतंत्र
फिर चिंता फिक्र जैसे शब्द
लगने लगते निरर्थक |
तभी मैं फिक्र नहीं पालती
मैं हूँ संतुष्ट उतने में ही
जो हाथ उठा कर दिया प्रभू ने
और अधिक की लालसा नहीं |
 चिंता  चैन से सोने नहीं देती
हर समय बेचैनी बनी रहती
यही तो एक शिक्षा मिली है
 खुद पर हावी मत होने दो |
जितना मिले उसी को अपना मानो
मन को ना विचलित करो
तभी खुशी से रह पाओगे
सफल जीवन जी  पाओगे |  
शा   

24 अप्रैल, 2020

आया महीना रमजान का

 आज से हुआ प्रारम्भ पवित्र रमजान का महीना
है बहुत कठिन परिक्षा का काल अब एक मांह तक
 भूख प्यास कुछ नहीं लगती इबादत के समक्ष 
यही परख करता है सच्चे नमाजी मुसलमान की 
पांच वक्त की नमाँज अता करता है जकात देता है
 कठिनाई झेल लेता है आल्लाह की देन समझ |
आशा

22 अप्रैल, 2020

गृहणी



शाम ढले उड़ती धूल
जैसे ही होता आगाज
चौपायों के आने का
सानी पानी उनका करती |
सांझ उतरते ही आँगन में
दिया बत्ती करती
और तैयारी भोजन की |
चूल्हा जलाती कंडे लगाती
लकड़ी लगाती
फुकनी से हवा देती
आवाज जिसकी
जब तब सुनाई देती |
छत के कबेलुओं से
छनछन कर आता धुंआ
देता गवाही उसकी
चौके में उपस्थिति की |
सुबह से शाम तक
घड़ी की सुई सी
निरंतर व्यस्त रहती |
किसी कार्य से पीछे न हटती
गर्म भोजन परोसती
छोटे बड़े जब सभी खा लेते
तभी स्वयं भोजन करती |
कंधे से कंधा मिला
बराबरी से हाथ बटाती
रहता सदा भाव संतुष्टि का
विचलित कभी नहीं होती |
कभी खांसती कराहती
तपती बुखार से
व्यवधान तब भी न आने देती
घर के या बाहर के काम में |
रहता यही प्रयास उसका
किसी को असुविधा न हो |
ना जाने शरीर में
कब घुन लग गया
ना कोइ दवा काम आई
ना जंतर मंतर का प्रभाव हुआ
एक दिन घर सूना हो गया
रह गयी शेष उसकी यादें |
आशा