30 अप्रैल, 2020

है दूर बहुत मेरा धर




है दूर बहुत मेरा गांव
रोजी रोटी के लिए
निकला था घर से
अब पहुँचने को तरसा
फँस कर रह गया हूँ
 महांमारी के चक्र व्यूह में
जाने अब क्या होगा
कब अपने गाँव पहुंचूंगा
अपने परिवार से मिलूंगा
मिल भी  पाऊंगा या नहीं
या ऐसे ही दुनिया छोड़ जाऊंगा
 पसोपेश में फंसा हुआ हूँ
 जाऊं या यहीं ठहरूं
कभी तो मन होता है
भगवान भरोसे सब को छोड़ दूं
कोई भी प्रयत्न है निरर्थक
फिर मन में कभी
 आशा जन्म लेती है
हार किसी से क्यों  मानूं ?
जब तक जियूं जैसे जियूं
 आशा का दामन थामें रहूँ
ईश्वर पर आस्था सदा रहे  
कर्मठ हूँ विश्वास मन का बना रहे
 कभी  ना छोडूं साथ आस्था का
जैसी भी परिस्थिति हो
उनका सामना करू |

आशा

29 अप्रैल, 2020

शोहरत





 
 फैली खुशबू हिना सी चहुओर
होने लगी शोहरत दिग्दिगंत में
जिधर देखा उधर एक ही चर्चा  थी शोहरत की उसकी
जागी उत्सुकता जानने की
 कैसे पहुंची वह शोहरत के उस मुकाम तक
जानने को हुई आतुर जानना चाहा  सत्य
पहले तो  सही बात बताने को हुई  नहीं राजी
पर जब मैंने पीछा नहीं छोड़ा की बहुत मन्नत उससे
फिर हलकी सी मुस्कराहट उसके  चहरे पर आई
 बोली मैं तो तुम्हारी परिक्षा ले रही थी
फिर खोली उसने मन की गठरी
तुम में है कितनी शिद्दत कुछ नया करने की
हर उस बात को आत्मसात करने की
जिसे सीखने की है ललक   तुम्हारे  मन में  
 यूँ ही तो  समय काटने को पूंछे है तुमने प्रश्न
 मेरा उतारा चेहरा देख  मेरी उत्सुकता जान
 वह हुई उद्धत मन की बात बताने को
कहने लगी किसी कार्य से कभी हार नहीं मानी उसने  
असफल भी हुई पर मोर्चा कभी न छोड़ा उसने  
फिर दुगनी मेहनत से उसी कार्य में जुटी रही  
जब सफलता हाथ आई तभी शान्ति मन में आई
 प्रशंसा पा  खुद पर कभी ना आया  अभिमान  
 उसने दिया सफलता का श्रेय सदा
 अपने सहभागियों को भी भरपूर  दिया
 गर्व से रही कोसों दूर आलस्य को दी तिलांजलि
दूसरों ने यही कहा कितनी विनम्रता भरी है
है सच्ची हकदार शोहरत पाने की  
तभी उसकी  शोहरत को पंख लगे ऊंची उड़ान भरी
और  फैली  दिग्गिगंत में |
आशा


27 अप्रैल, 2020

आइना




है वह आइना तेरा
हर अक्स का हिसाब रखता है
तू चाहे याद रखे न रखे
उसमें जीवंत बना रहता है
बिना उसकी अनुमति लिए
जब बाहर झाँकता है
चाहे कोई भी मुखौटा लगा ले
बेजान नजर आता है
यही तो है कमाल उसका
हर भाव की एक एक लकीर
उसमें उभर कर आती है
तू चाहे या न चाहे
मन की हर बात वहाँ पर
  तस्वीर सी छप जाती है
चाहे तू लाख छिपाए
तेरे मन के भावों की
परत परत खुल जाती है
दोनों हो अनुपूरक
एक दूसरे के बिना अधूरे
है वह आइना तेरे मन का
यह तू क्यूँ भूला |

आशा