12 जून, 2020

रणभेरी


                  बीते कल की बात है
कुछ लोग एकत्र हुए
 उस  खेल परिसर में
पहले बातें सामान्य रहीं 
 फिर तंज कसे गए  
एक दूसरे पर आक्षेप लगाए  
वार पर पलटवार होने लगे
 लोगों में टूटा संयम का बाँध
  भांजी लाठियाँ लांघी सारी सीमाएं
ना बड़ों का सम्मान रहा 
 ना  छोटों की फिक्र किसी को
ताल ठोक रणभेरी बजा
 किया युद्ध का एलान
  परिसर परिवर्तित हुआ  रणक्षेत्र में
पहले पत्थरबाजी आगजनी
 फिर  हाथापाई आपस में
देशी कट्टों से भी
 कोई परहेज नहीं  
खून खराबा तोड़ फोड़ से
 हुए जब त्रस्त कुरूक्षेत्र में 
 मारपीट हुई सामान्य सी बात
जब सारी  सीमा पार हो गई  
कुछ लोग मध्यस्तता करने पहुंचे
जब बीच बचाव से काम न चला
 अश्रु गेस के गोले दागे
 भीड़ तंत्र ने सर उठाया
बल प्रयोग अंतिम स्रोत बना
 उसे नियंत्रित करने का 
शान्ति तो स्थापित हुई
 पर बहुत समय के बाद
किसी ने न सोचा
 नुक्सान हुआ  किस का  
हाथ  कुछ आया नहीं
 ना ही कोई लाभ हुआ
 बरबादी का आलम पसरा
जाने कितनों की जान गई
जान माल की हुई तवाही
रण से हुई   क्षति भारी |
आशा





11 जून, 2020

स्वतंत्रता


हुई स्वतंत्र अब  आत्मा
जन्म मरण से हुई  मुक्त
अब बंधक नहीं शरीर की
असीम  प्रसन्नता हुई आज  |
वह बंधन नहीं चाहती
उन्मुक्त विचरण  की है चाह
स्वतंत्र रहना चाहती है
किसी तरह की रोक टोक
ना आई उसे रास  |
जब भी जन्म लिया धरती पर
खुद को पाया ऐसी कैद में
ना ही  खुल कर हंसी कभी
ना हुआ कभी  खुशी का एहसास उसे |
भवसागर में ऐसी उलझी
सुख दुःख के चक्कर में
जिन्दगी जीना भूली
म्रत्यु का बंधन रहा सदा |
अब तोड़ आई है सब बंधन
स्वतंत्र जीवन जीने के लिए
 किसी बंधन का दंश
अब नहीं सालता उसे  |
यूं ही नहीं लिए फिरती थी
इस  पञ्च तत्व  का बोझा उठाए
था कर्ज पिछले  जन्म का
जिसे चुकाना था उसे  |
अब कोई अहसान नहीं है किसी का  
नहीं है कोई बोझ दिल पर
निश्चिन्त हो कर रह सकती है
स्वतंत्र विचरण कर सकती है |
है  स्वतंत्र किसी बंधन में बंधी नहीं है
भव सागर के चक्र से दूर 
पर फिर भी अकेली नहीं है
 ईश्वर  है  उसके   साथ |
आशा |




बदला मौसम


लो  आ गई काली बदरिया
मौसम  ने करवट बदली है
कभी नन्हीं  बूँदे बरस जाती हैं
 आने को है वर्षा जताती हैं
 वर्षा  का आग़ाज करा  जाती हैं
 हल्की सी ठंडक बढ़ी है
 खुशनुमा मौसम हुआ है
 बहती है  मनमोहक  बयार
मन  रमा  रह जाता  यहाँ
 हरी भरी वादी में
रंग बिरंगे  फूल खिले हैं
 बेंच पर बैठ यहाँ देखे
 जो दृश्य विहंगम
 मन के केनवास पर  उतारने का
गहरे रंगों से उन्हें  सजाने का
हुआ  है  अरमां जागृत
 भीतर का सजग  चित्रकार जगा  है  
कल्पना जगत   में खोने लगा  है
मनमौजी है तूलिका उसकी खूब चलती है
यूँ तो अभी  बाहर भ्रमण  का मन है
पर पानी में भीगने का भी  डर है
 जकड़ लिया सर्दी ने यदि बड़ी समस्या होगी
कड़वी दवा से साक्षात्कार होगा
उससे दूर भागने का कोई विकल्प न होगा
घूमने का सारा मजा किरकिरा होगा |
आशा

09 जून, 2020

संग्राम


दिल और दिमाग
हैं तो सहोदर
एक साथ रहते है पर
 संग्राम छिड़ा है  दौनों में |
आए दिन की बहस
 नियमों का उल्लंधन
एक ने चाहा दूसरे ने नकार दिया
हो गई है आम बात  |
कभी दिल की जीत  भारी
 कभी मस्तिष्क की जीत हारी
हार जीत के खेल में
  तालमेल नहीं है  दौनों में |
 नजदीकियां बढ़ते  ही
 नया  विवाद जन्म ले लेता है
फिर से वही बहस
 आए दिन की तकरार
उसमें  उलझे  रहते है दौनों |
  संग्राम थमने का
नाम ही नहीं लेता
  दौनो धरती के हुए  दो ध्रुब
या धरा और  आकाश |
|प्रेम प्यार से  एक साथ
 मिलजुल कर रह नहीं पाते
मिलते ही विरोध दर्शाते  
अपनी दुनिया में जीना चाहते |
 बहुत दुखी हूँ
 किस तरह उनमें तालमेल बनाऊ
 कैसे मध्यस्तता करूं  
 इस  संग्राम का अंत करूं |
 भूले सामंजस्य बना कर
 रहने का मूल मन्त्र
खुद भी रहते परेशान
और दूसरे की भी चिंता नहीं |
 हुए  ऐसे  आत्म केन्द्रित
दो चक्की के पाटों के बीच फंसी हूँ
मेरा क्या होगा कब थमें संग्राग
अब तो यह तक नहीं सोच पाती |
आशा