02 जुलाई, 2020

चौमासा


  घिर आई काली कजरारी बदरिया  
आपस में टकराए बादल
चमकी चमचम  बिजुरिया
 मौसम हुआ तरवतर चौमासे में 
धरती ने ओढी चूनर धानी  नवयौवना सी
दादुर कोयल मोर पपीहा बोले बगिया में 
मयूर  ने की अगुवाई चौमासे की 
अपने पैरों की थिरकन से |
मयूर ने पंख पसारे झूम झूम घूम कर
 नृत्य किया बागों  में 
कंठ से मधुर  स्वर निकाले
आकर्षक नयनाभिराम नृत्य प्रदर्शन में | 
 आकृष्ट किया अपनी प्रिया को 
 रंगबिरंगे फैले पंखों से
 नयनों से  की अश्रु वर्षा भी 
 उसका सान्निध्य को पाने को |
  छोटी बड़ी  बूदें जल की मोह रही मन को
मन होता नहाए तेज बारिश के पानी में 
दिल से करें  स्वागत चौमासे का |
बहनों ने सोलह श्रृंगार किये हैं 
 भरी भरी मेंहदी सजाई है पैरों और  हाथों में
पहनी है सतरंगी चूनर हाथ भर भर हरी चूड़ियाँ
जल्दी बड़ी है उन्हें अपने पीहर जाने की|
चौमासे के त्यौहार सारे  मन में गहरे ऐसे पैठे 
एक भी छोड़ना नहीं भाता मन को 
 बाट जोहती बैठी हैं वे अपने भैया  के आने की
चौमासे के त्योंहार सखियों के साथ  मनाने की | 
ईश्वर भी आराम  चाहता है चौमासे में 
बहुत थक गया  है दुनिया को चलाने में 
कुछ काल उसे भी चाहिए प्रबंधन विश्व का करने को
चौमासे के  आगे की रणनीति तय करने को |

                             आशा

30 जून, 2020

सरहदें


 विश्व पूरा बटा है अनगिनत देशों में
सरहदों ने अलग किया है एक दूसरे से सब को|
अधिकाँश देशों में है तनातनी कहीं नहीं है शान्ति 
 बैठे है सब दहकते अंगारों पर |  
अवधारणा वसुधैव कुटुम्बकम की रह गई पुस्तकों में सिमट कर
 पड़ोसी देश भी भूले सद्भाव भाईचारा आनंद आपस में मिलजुल कर रहने का |
सरहदों ने बांटी धरती जल और आकाश हर देश के लिए सरहद की रेखा खिची है 
 भूल गए हैं  कोई नहीं ले जाता एक इंच भी जमीन खुद के साथ
यूं तो कहा जाता है अच्छे सम्बन्ध होने पर पड़ोसी ही सबसे पहले काम आते हैं|
  हर समय होते हैं मददगार पर अब ऐसा प्रतीत  नहीं  होता अब 
 छोटे से जमीन के टुकड़ों के लिए आपसी  सम्बन्ध भूल कर
मरने मारने को तत्पर रहते सदा पड़ोसी देश |
कितना खून खराबा होता है सरहद पर
सीमा सुरक्षा में दिन रात जुटे रहते शूरवीर अनेक 
अपनी सरहद को महफूज रखने के लिए
 कठिन परिस्थितियों में भी रहरे तत्पर|
देश  को परतंत्र होने से  बचाने के लिए
अपनी जान तक को दाव पर लगा देते हैं
उनका है एक ही लक्ष्य देश हित है सर्वोपरी
  बहुत गर्व होता है देश को उन शूरवीरों  पर |
हैं धन्य वे वीर जिन  ने चुना कार्य देश की रक्षा का 
धन्य हैं वे माताएं जिन्होंने जन्मा ऐसे सपूतों को |
आशा


27 जून, 2020

वर्षा की दस्तक




जब काली घटाएं  छाईं आसमान में
बादल गरजे बिजली कड़की 
बारिश की बूंदों ने की  अमृत की वर्षा 
बदले मौसम  में धरा ने ली अंगड़ाई  |
चहु ओर छाई हरियाली खेतों में
हुआ मन विभोर इस  अनुपम छटा को  देख 
इसी मनोरम दृश्य को देख 
आत्मसात करने की इच्छा हुई बलवती |
गर्म मौसम की तल्खी  हुई कम
ठण्डी बयार बह चली जिस ओर 
नन्हीं नन्हीं बूंदों ने किया सराबोर
घर आँगन खेतों को हो कर विभोर |
 तरसी निगाहें इसे आत्मसात करने को 
प्रकृति की अनमोल छवि मन में उतारने को 
मनोभाव मन में दबा न सकी 
कागज़ पर कलम भी खूब चली |
आशा



                             

26 जून, 2020

आदत नशे की

सोच रहा था एक बात रमैया की कही
जीवन में नशा न किया तो क्या किया
बार बार गूँज रहे थे शब्द उसके कानों में  
पर भूला नुक्सान कितना होगा तन मन  को |
अपना आपा खोकर सड़क पर झूमते झामते
  गिरते पड़ते लोगों को आए दिन देखता था
हर बार सोचता  है यह आदत कैसी
क्यूँ गुलाम होते लोग ऐसी आदतों के |
दिन में जाने कितने वादे कितनी कसमें खाते
शाम पड़े ही भूल जाते कहने लगते
 कौनसे वादे कैसी कसमें ?मैंने कब किये?
 पीने में है बुराई क्या? गम ही तो दूर करते हैं अपने |
यदि खुश होते वे  कहते  
मौज मस्ती में  पी ली है ज़रा सी
इसमें बुराई क्या है?
 मित्रों ने पिला दी है रोज कौन पीता पिलाता है |
अपनी बात पर अडिग रहने को अनेक तर्क देते
यही सब  सोचते एक मधुशाला के सामने से गुजरा
दूर से ही हाथ जोड़े प्रभु के |
कोई भी नशा सुखकर नहीं होता
कितने धर उजड़े हैं नशे की आदतों से
 शिक्षा मिली है उसे इनसे दूर रहने की
तभी यह नशे की बीमारी गले नहीं पड़ी है |
आशा  

    

25 जून, 2020

पलट कर जब देखा उसने

                               पलट कर जब उसने  देखा विगत में
यादों का पिटारा  खुलने लगा
पहुच गया उसका मन मस्तिष्क
बीते  दिनों की यादों में |
पहले कल्पनाओं  में खोई रहती थी
सुख निंदिया सोई रहती थी   
रही  वास्तविकता से दूर बहुत
जीवन कितना है कठिन कभी सोचा नहीं  था |
एक दिन चिलचिलाती धुप में
पैर पड़े जब कठोर  धरा  पर
वास्तविकता से हुआ सामना
झुलसा तन मन ऊष्मा की तीव्रता से |
पहले  वह सहन न कर पाई
उलटे पैर पलायन का हुआ मन
 सोचा जाने क्यूँ 
मुसीबत गले लगाई|
 फिर विचारों ने करवट बदली
और लोग भी तो जीते है
उसी घुटन भरे माहोल में
फिर वह क्यूँ पीछे हटने की सोचे |
तब दृढता से कदम उठाए आगे बढी
 बापसी का ख्याल न आया मन में
यही दृढ़ता आत्मसंयम तो जरूरी है
 किसी  कार्य को प्रारम्भ  करने में   |
आशा