07 जुलाई, 2020

जिन्दगी एक प्रश्नपत्र





वह अकेली   ही नहीं घिरी है
विविध  प्रकार के  प्रश्नों से
उत्तर त नहीं सूझते 
क्या क्या जबाब दे |
प्रश्नों का अम्बार लगा है
 हल करने के लिए  
कई प्रकार  के प्रश्न  है
 आज के परिवेश में |
क्यूँ क्या कैसे कब कहाँ
 किसलिए से शुरू हुआ हैं
सही हल उनका 
कुछ भी नहीं निकलता |
मिलते जुलते उत्तर
 लिखे होते चुनाव के लिए
 यहाँ  वहां भटकना पड़ता
  उन्हें  हल करने के लिए|
किसी प्रश्न की तो है विशेषता यही
होता प्रश्न एक उत्तर अनेक
सही विकल्प खोजना होता
 उत्तर पुस्तिका में लिखना होता |
किसे सही माने किसे करे  निरस्त
जब सोच नहीं पाती 
तीर में तुक्का लगाती
कभी सही होता उत्तर  कभी गलत |
यदि  प्रश्न गलत हल किया  हो
 और नंबर कट जाते हों 
तब बहुत पछतावा होता है
क्यूँ गलत उत्तर पर निशान लगाए |
इसी तरह  जिन्दगी की गाड़ी
फंसी  है छोटी  बड़ी समस्याओं में  
जिहें हल करना होता मुश्किल
 प्रश्नपत्र की तरह |
कोई भी सहायक नहीं होता
 उसे आगे खीचने में
 खुद ही हल खोजने होते हैं 
जिन्दगी के प्रश्नों के |
  उत्तर सही  चुने यदि 
जिन्दगी सरल चलती जाएगी
वरना समस्याओं की 
संख्या बढ़ती जाएगी |
आशा


06 जुलाई, 2020

गुरू को नमन


                                       आज है गुरू पूर्णिमा 
सभी गुरूओं  को है  नमन मेरा 
सागर से गहरा कोई नहीं
माँ के दिल की गहराई 
किसी ने नापी नहीं
माँ की ममता की कोई सानी  नहीं
हमारी भलाई किसी ने जानी नहीं
केवल माँ ने ही हाथ आगे बढाए
जैसी भी  हूँ मुझे थामने के लिए
प्रथम गुरू माँ  को  मेरा प्रणाम
मेरा जीवन सवारने को
 सही राह दिखाने के लिए
खुश हाल जिन्दगी जीने के लिए
 मेरे मार्ग दर्शक को मेरा  नमन   
है आज गुरू पूर्णिमा मेरे गुरू को
मेरा शत शत नमन |   
आशा

05 जुलाई, 2020

आगे पीछे की क्या सोचूँ ?



खेल ही  में समय बिताया
कभी सोचा नहीं भविष्य का  
वर्तमान में जीने के लिए
बीते कल को याद न किया |
केवल स्वप्नों में डूबी  रही
वर्तमान की चमक दमक  ने
 इस तरह मोहा मुझे
आगे का मार्ग  भटक गई |
बहुत चाहा फिर भी  
 आगे प्रगति कर  न सकी 
कोई मददगार न मिला
 सही मार्ग दिखाने को |
कूपमंडूक सी  सिमटी रही
खुद के आसपास अपने आप में
कूए से बाहर आ न सकी
उसे ही अपनी दुनिया समझी |
आखिर दुनिया है  कैसी
कितने रंग छाए है उसमें
जब देखा ही नहीं
तब क्यूँ दोष दू किसी को  |
वर्तमान करता आकर्षित
उसमें  ही  रहना चाहती हूँ
श्वासों  का क्या ठिकाना
                                                                  आगे पीछे की क्या सोचूँ ?
                                                आशा

04 जुलाई, 2020

कुछ लम्हे तो चाहिए





कुछ लम्हें तो  चाहिए
 तुम्हारे  दीदार के लिए
तुम्हें जानने  के लिए
वह भी ऐसे कि उनमें
किसी का दखल न हो |
मुझे पसंद नहीं है
 किसी की दखलंदाजी
तुम्हारे मेरे  बीच आकर   
गलतफैमी बढाने की
 बातों को तूल देने की | 
होगी जब आवश्यकता  
  कानों के कच्चे नहीं
 हम खुद ही सक्षम हैं
आपस में उलझा हुआ पेच सुलझाने में |  
मुझे चाहिए समय
 खुद सोचने दो  
दूसरों की बैसाखी ले कर 
 कब तक चलूंगी |
 दूसरों की सलाह
 होगी कितनी कारगर ?
है विश्वास मुझे खुद पर
 कभी गलत नहीं सोचूंगी |
किसी की गलत सलाह 
पर कान न धरूंगी 
 सही निर्णय को
 सिर माथे रखूंगी |
आशा है सभी समस्याएं
अपने आप समाप्त होंगी
मेरे तुम्हारे तालमेल पर  
लोग मन में ईर्ष्या करेंगे |
आशा