22 जुलाई, 2020
21 जुलाई, 2020
बरसात
था इन्तजार हर वर्ष की तरह
बरसात के इस मौसम का
धरती में दरारे पड़ी थी
अपना दुःख किसे बताती |
झुलसी तपती गरमी से वह
तरस रही थी वर्षा के लिए
हरियाली की धानी चूनर से
सजने के लिए |
बड़ी बड़ी बूंदे बरसीं
फिर मौसम ने ली अंगड़ाई
बादल गरजे बिजली कड़की
ली करवट इस मौसम ने |
कहीं अती भी हो गई
बाढ़ आने से जिन्दगी बेहाल हुई
घर खेत खलिहान डूबे सारे
घर से बेघर हुए लोग |
उजड़ती गृहस्ती देख रहे
थे
सूनी सूनी आँखों से
तब भी कोई मदद नहीं मिल पाई
जब गुहार लगाई शासन से |
तिनका तिनका जोड़ा था
कितना समय गुजारा था
उस छोटे से घर के निर्माण में
जो अब जल मग्न हुआ |
एक झटके में बाढ़ का जल
सब कुछ बहा कर ले गया
किसी ने कल्पना तक न की थी
कि ऐसा समय भी आएगा |
बुने गए सारे स्वप्न ध्वस्त हुए
बिखरे क्षण भर में ताश के पत्तों जैसे
जो कुछ बचा समेट लिया
चल दिए नए बसेरे की खोज में|
जाने कब हालात में परिवर्तन
आएगा
बरसात का कहर कब थम पाएगा
क्या ईश्वर ने परिक्षा ली है धैर्य की ?
या प्रारब्ध में यही लिखा है
कितना और संघर्ष है जिन्दगी में
विचार मग्न वे सोच रहे हैं मन में |
आशा
आशा
20 जुलाई, 2020
कठिन समय जब आता
एक दौर था ऐसा जब वह
प्रथम पेज अखवारों के भरे होते महामारी समाचारों से
आपस में विचारों को न मिल पाने से
मायूस सा बुझा बुझा रहता था
हर पल उसका सिहरन से भरा होता था
घूम
जाते हैं वे लम्हें मस्तिष्क में आज भी |
सिहरन से
भरे वे पल अब यादों में सिमटे हैं
कितनी नृशंस हत्याओं से जब रूबरू हुए थे
भूल नहीं पाते वे हादसे एक नहीं अनेक
जब लाशों के अम्बार लगे रहते थे |
अनगिनत लोग लहूलुहान हुए थे
जब भीड़ पर बलप्रयोग हुआ भरपूर
नहीं बच पाए प्राकृतिक आपदाओं से भी बेचारे
आपस में विचारों को न मिल पाने से
नित नए विवाद जन्म लेते रहते पड़ोसी देशों में
आपस में मित्र भाव भूल बैर मन में लिए रहते
आए दिन का खून खराबा जीना दूभर किये रहता |
जीवन में फैली अशांति सरल नहीं होती जीवन शैली
हर समय मर मर कर जीने की कला सब नहीं जानते
पर जांबाज सिपाही रहते तत्पर हर क्षण देश हित के लिए
प्रकृतिक आपदाओं से भी मोर्चा लेते नहीं हारते
हैं सक्षम आज भी हर
हादसे से निवटने में |
देश में चिकित्सक भी सजग प्रहरी की तरह
दिन रात जुटे रहते निस्वार्थ भाव से सेवारत रहते
वे सहयोग पूरे तन मन से करते गर्व
होता है उन पर
जिनका उद्देश्य है देश हित सर्वोपरी |
आशा
19 जुलाई, 2020
तेरी मेरी केमिस्ट्री
जब भी तेरे दर से गुजरे
वादेसवा
हाथों की मेंहदी की महक साथ
ले जाए
तेरी जुल्फों की हलकी सी जुम्बिश भी
मेरे मन को अपने साथ बाँध ले
जाए |
तेरी यादों का फलसफा है इतना
बड़ा
कहाँ से प्रारम्भ करूं कहाँ
समाप्त करूं
मन को तृप्ति नहीं मिल पाती
जब तक उसे पूरा आत्मसात न
करूं |
होती है अजीब सी हलचल
मन के किसी कौने में
बेचैनी बढ़ती जाती है
कैसे उसे संतुष्ट करूं |
तेरे आने की खबर मिलते ही
निगाहें दरवाजे से हटने का नाम नहीं लेतीं
पर जब नहीं आने का
कोई बहाना खोज लिया जाता
फोन की घंटी बजते ही
गहरी निराशा होती |
दुखी मन का हाल न पूंछो
किससे व्यथा अपनी कहूं
जो सोच नहीं पाते दिल की नजाकत को
उनसे दिल का हाल बयान कैसे करूं |
मुझे कोई मार्ग नहीं मिलता
अपनी बेचैनी छिपाने का
है दिल मेरा खुली किताब का एक पन्ना
फिर भी क्या सब पढ़ कर समझ न पाएगे ?
क्या कोई हल नहीं मिलेगा
तुम्हें मुझे समझने का
इस दूरी को पाटने का
इस दूरी को पाटने का
तेरी मेरी केमिस्ट्री जानने का |
आशा
18 जुलाई, 2020
क्या बड़ी भूल कर बैठी है
छूने लगी है हर सांस
तुम्हारी धड़कनों को
जीने का है मकसद क्या ?
यह तक न सोच पाई |
की इतनी जल्द्बाजी
निर्णय लेने में
स्वप्नों में वह कल्पना भी
बुरी नहीं लगती थी |
उससे उबर भी न पाई थी
कि सच्चाई सामने आई
पर वास्तविकता से
सामना इतना सरल नहीं है
उस पर यदि विचार करो |
सच्चाई छुप नहीं पाती
जब झूट का सहारा लेती
तभी तो सिर उठाती है
उबाऊ जीवन के बोझ के
आगे आगे चलती है |
किसी और के मुखोटे को
अपने मुह पर लगा कर
उसे ही अपना मान कर
क्या बड़ी भूल कर बैठी है ?
आशा
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