03 नवंबर, 2020

सागर विशाल सी गहराई तुम में


सागर विशाल सी  गहराई तुम में

उसे पार न  कर पाऊँ

कैसे उसमें डूबूं बाहर निकल न पाऊँ

गहराई की थाह न पाऊँ |

की कोशिश कितनी बार

तुम्हें समझने  समझाने की  

पर  असफलता ही हाथ लगी

मन की हार हुई हर बार |

पर कोशिश ना छोड़ पाई

कमर कसी खुद को सक्षम बनाया

 फिर से उसी समस्या  में उलझी

सफलता पाने के लिए |

मुझे हारना अच्छा नहीं लगता

शायद मेरे शब्दकोश में

हार शब्द  है ही नहीं तभी तो

अनवरत लगी रहती हूँ खुद को झुकाने में |

सफलता पाने के लिए क्या करूँ

जब तक सफलता ना पालूँ  

मुझे चैन नहीं मिल पाएगा

जो दूरी तुमने बनाई है मुझे इसे मिटाना है |

तभी तो  निदान हो पाएगा उलझन का

 किसी एक को तो झुकना ही है

 मै झुकी तो तुम्हारा अहम्

बना रहेगा वही तो  तुम चाहते हो |

यदि यही  समस्या का हल है तो यही सही

झुकने से विनम्रता ही आएगी

 मुझ में कोई कमी नहीं होगी

मैं जहां हूँ वहीं रहूँगी |  

आशा

 

     

 

 

02 नवंबर, 2020

घट भरा विचारों से


                                   

कहने को कोई बात नहीं है

पर है भण्डार विचारों का

जिन्हें एक घट में किया संचित

कब गगरी छलक जाए

यह भी कहा नहीं जा सकता

पर कभी बेचैन मन इतना हो जाता है

कह भी नहीं पाता ठोकर लगते ही

छलकने लगता गिरने को होता

ऐसी नाजुक  स्थिति में बहुत शर्म आती है

कहानी अनकही जब उजागर हो जाती है |

पर कब तक बातें मुंह तक आकर रुक जातीं

मन ही मन बबाल मचाती रहतीं

चलो अच्छा हुआ मन का गुबार निकल गया

फिर से मुस्कान आई है चहरे पर |

किसी ने सच कहा है स्पष्ट बोलो

मन से अनावश्यक बातों को निकाल फेंको

मन दर्पण सा हो साफ

तभी जीवन होगा सहज

 भविष्य भी सुखमय बीतेगा |

आशा

 

 

 

 

 

31 अक्तूबर, 2020

शरद पूर्णिमा

 

रात की ठंडक बढी

आसमान में जब  चन्दा चमकता

कभी छोटा कभी बड़ा वह बारबार रूप बदलता

पन्द्रह दिन में पूर्ण चन्द्र होता |

नाम कई  रखे  गए उसके

कभी गुरू पूर्णिमा कभी शरद पूर्णिमा 

चाँद कभी चौधवी  का

                                     शरद  ऋतू में जब आती पूनम बड़ा महत्त्व होता  |

ऐसा कहा जाता है 

स्वास्थ्य की दृष्टि  से

 इस रात अमृत की वर्षा होती

 कई रोगों के उपचार में बड़ी सहायक होती |

शरद पूर्णिमा की रात होती जश्न मनाने की

मां सरस्वती की आराधना की

गीत संगीत की महफिल सजती

रात्री जागरण होता नृत्यों का समा बंधता |

आधी रात तक का समय

कैसे बीत जाता पता नहीं चलता

फिर चलता अमृत से भरी खीर पान  का

 केशरिया दूध पीने का |

आज  जब कोरोना की कुदृष्टि है सब ओर

हर जश्न फीका फीका रहा

ना कविता का दौर चला ना ही नृत्य उत्सव हुआ

 बस गाने थोड़े से  सुन पाए |

आशा

 

29 अक्तूबर, 2020

बेचैनी

 


 कोई जब बेचैन हो

कहाँ जाए किससे सलाह लें

यह सिलसिला कब तक चले

यह तक जान न पाए |

मन को वश में कितना रखे

कब तक रखे कैसे रखे

इसकी शिक्षा किससे ले

 यह भी सोच  न पाए |

 एक ही बात दिमाग में रहे

किसी की बात जब तक मानों

सहन शक्ति से ऊपर ना हो

वह अपने हित में हो |

जब किसी पर  क्रोध आए

है दूरी जरूरी  उससे

 मन को जहां  जब चिंता हो

वहां  जाना नहीं जरूरी |

मन की खुशी के लिए

हर वह कार्य किया जाए

जिससे किसी को दुःख न पहुंचे

खुद को भी प्रसन्नता छू पाए |

सारे टोने टोटके हुए बेअसर

मन को समझाने को

अब कोई क्या करे

कहाँ जाए किससे मदद मांगे |

आशा