जिन्दगी जी ली है भरपूर अब तक
कोई अरमा शेष नहीं
कोई ऐसा मार्ग खोजना है अब तो
जिसमें पहुँच कर ऐसी रमू
जिन्दगी के शेष दिन भी
जी भर कर भर पूर जियूं |
किसी की सेवा नहीं चाहती
किसी के एहसान तले दब कर
जीना नहीं मंजूर मुझे
अपने मन की मालिक रहूँ
कोई परिवर्तन नहीं स्वीकार मुझे |
प्रभु ने भी अस्वीकार की मेरी अर्जी
अभी तक बुलावा नहीं आया वहां से
इतने लोगों को स्थान मिला उस जहां में
मेरे पहुँचते ही दिखा बोर्ड “जगह नहीं है” का |
बहुत बेमन से निराश हो कर लौटी वहां से
तब से अभी तक वह बोर्ड हटा नहीं है
जीवन की गति धीमी भी हुई है
जीना दूभर हुआ अब तो |
आशा