जिन्दगी चली ट्रेन सी
पटरियों पर जैसे ट्रेन चली
कभी चलती सरपट
तो कभी रुक जाती स्टेशन पर |
चाय वाले की आवाज सुनाई देती
कभी आज की ताजा खबर
सुनाने को बेचैन अखवार वाले का
स्वर मुखर होता |
तभी धीरे से एक स्टेशन से
अगले पर जाने को
खिसकती ट्रेन सी जिन्दगी
गति पकड़ती |
स्टेशन से आगे जाने के लिए
कुछ कर्तव्य निभाने के लिए
जहां तक संभव हो कोई कार्य अधूरा
नहीं छोड़ना चाहती जिन्दगी |
एक समय ऐसा आता
अंतिम स्टेशन पर पहुँच कर
थम जाती जिन्दगी रुकी ट्रेन की तरह
है कमाल की जिन्दगी |
कितने भी व्यवधान आएं
आगे बढ़ती जाती
गंतव्य तक पहुँच कर ही
दम लेती जिन्दगी |
आशा