20 अगस्त, 2021

कोरोना बचाव सूत्र कितने सफल


 

कोरोना बचाव सूत्र सफल न रहे  

बड़े समय के बाद घर से निकले थे

  कुछ दिन तो लौक डाउन  ने रोका 

कोरोना महांमारी ने जब  सर उठाया  

सरकार  ने बचाव के प्रयत्न  किए थे  |

दूसरी बार भी वही नियम  अपनाए थे   

पर आम जन अब ऊब चुके थे सब से

सरकारी  नियमों का उल्लंघन किया प्रारम्भ

यहीं मात खाई कोरोना  महामारी से  |

बीमारी के दूसरे चरण ने घरों को तबाह किया 

शमशान में लगी लाइन मृतकों की 

अंतिम संस्कार के लिए पञ्चतत्व में मिलाने को  |

 निगाहें जहां जातीं वहीं रुदन का साम्राज्य देख

मन को सदमा पहुंचा जीना दूभर  हुआ 

व्यस्त रखा खुद को  पर  शान्ति न मिली

सरकारी  प्रयत्नों में कमी तब भी न थी  |

अब जन मानस  की रूचि  कम हुई

बचाव के बनाए गए सरकारी नियमों में

 आर्थिक संकट ने घेरा

बेरोजगारी  भी कम न हुई |

आहट बीमारी के तीसरे चक्र ने की

 दी दस्तक घर के  दरवाजे पर   

सोच लिया जिस विधि राखे राम

 उस विधि ही रहना है|

जितनी सांसें लिखीं प्रारब्ध  में

 उनका ही मान रखना  है  

समय से पहले समय के बाद

 कुछ भी नहीं होना है |

आशा 

 

   

19 अगस्त, 2021

अनकहा सच


 

मुंह पर शब्द आकर रुके

क्या कारण रहा

किसी से छुपा नहीं है

पर  बहुत स्पष्ट भी  नहीं |

मन के भाव मुख से निकले

यह भी  सत्य नहीं

यह कैसे जानकारी मिली

कहाँ तक पहुंची सोच की इन्तहा हुई |

मुझे सच में  गौरव हुआ प्राप्त   

या पीछे से धक्का दिया गया

एक प्रमाण पत्र के लिए

जो था यथेष्ट मेरे लिये    |

प्रसन्न  मेरा  मन था

 यही  क्या कम था  

पर एक अनकहा सच

 मेरा पीछा कर रहा था |

मैं  ऐसा व्यक्तित्व थी वहां

जिससे सब तुलना करते थे

 वैर भाव मन में  रखते थे  

यह बाद में जाना |

 अन्य जगह जब पहुंची  

क्यूँ हुआ था ऐसा तब जाना

जब किसी के मुंह से निकला  

बड़े लोग बड़ी बात |

इनसे तुलना कैसी कब तक 

 हम भी कम नहीं किसी से

पर किसी के बल नहीं

सच में खुद्दारी हम में है इतनी जो इसमें भी  न थी |

18 अगस्त, 2021

बन्धनो न्मुक्त आनंद


 खुले न बंधन तुम्हारे हाथों के

देख रहा हूँ  मैं

बेड़ियों से भी दूरी नहीं है

समझ रहा हूँ मैं |

जब तक बंधन मुक्त न होगी

तुम कैसे जी पाओगी

उन्मुक्त हो समाज में विचरण

 कैसे कर पाओगी |

खुद का अस्तित्व कैसे खोजोगी 

 पराधीनता में घुट कर जियोगी

मुस्कान का मुखौटा लगा चहरे पर

चह्कोगी नकली व्यबहार करोगी |

अस्तित्व  खोज अधूरी रही यदि

 आगे कैसे बढ़ पाओगी    

क्या रखा है ऐसे बंधनों में

कि तुम्हारा  वजूद ही खो जाए |

 उन्मुक्त जीवन से बड़ा क्या है

अनावश्यक बंधन देते त्रास

नियम समाज के बिना सोचे

 अपनाने में है आनंद क्या   |

इस दुनिया में आते ही  

वर्जनाओं की झड़ी लग जाती

सब समाज का अपना क्या है

आज तक जान नहीं पाया   |

विपरीत परिस्थिति में 

तुम्हें अपनया  है 

पर तुम्हारे लिए कुछ कर न पाया 

है बड़ा संताप मुझे |

आशा 

 

 

 

 

   

 

 

17 अगस्त, 2021

भूल मेरी


 


दिन में सपने सजाए

बड़े अरमान  से

कल्पना में भी  उड़ी व्योम में 

कोई कमी न रही |

ऐसा मैंने सोचा था

खुद को अधिक ही

 सोच लिया था 

यहाँ मैं गलत थी |

यह तो  स्पष्ट हुआ

स्वयं के  आकलन से

 भूल इतनी बड़ी  

कैसे हो गई  |

सोचने को विवश हुई

मैंने सही आकलन न किया

खुद को समझा अधिक

सही हल न निकाला |

 सोच कर जब देखा

खुद की भूल समझआई

 उसे कैसे सुधारूं

 आज तक जान नहीं पाई |

 बीता कल लौट नहीं पाता

  मैंने जान लिया है

अब  खुद की भूल को

सुधार लिया है |

आशा

 

 

16 अगस्त, 2021

हाइकु



नमन तुम्हें

शहीद भारत के
है गर्व मुझे

देश हित को
दी प्राथमिकता है
सफल रहे
शत्रु से किया
सावधान देश को
वक्त रहते

भारत देश
शहीदों का देश है
है देश प्रेम

देश भक्ति का
जज्बा हर प्राणी में
मन हर्षाता

श्रद्धा सुमन
अर्पित तुमको हैं
हुए शहीद

आशा तुमसे
बहुत है देश को
अमर वीर
आशा


Sopoensiorhed