09 मार्च, 2022

वह और तुम


 

उसके ख्यालों में आना

आँख मिचौली खेलते रहना 

जज्बातों से उसके खेलना 

तुम्हें शोभा नहीं देता |

अपने पर रखो नियंत्रण 

किसी को दो न अवसर 

उंगलियां  उठाने का

कुछ अनर्गल बोलने का |

यह  अधिकार भी

तुम खो चुके हो

अपनी मनमानी करके

अकारण उससे उलझ के |

वह कोई गूंगी गुडिया नहीं

जो कभी न बोले 

अपने अधिकार जानती है

तुम्हें पहचानती है |

जितनी दूरी बना कर चलोगे

खुद पर नियंत्रण रखोगे

तभी उसे पाने में सफल रहोगे

यही एक  तरकीब उसे

तुम तक पहुंचाएगी |

जब वह लौट कर आएगी

एक नए रूप में होगी

जिसे दिल से अपनाना

पर हमें तब  भूल न जाना |

आशा

 '' failed to upload. Invalid response: RpcError

08 मार्च, 2022

कलम मेरी सीधी साधी


 

कलम मेरी सीधी साधी
करती है प्यार मुझे
जब भी क्रोध आता है मुझको
प्यार से शांत करती है मुझे |
यदि कोई विश्वासघात करे मुझसे
पहले ही करती सतर्क मुझे
मेरा कहना नहीं जब मानते
तब अग्नि वर्षा करती है |
इसी लिए है बहुत प्यारी न्यारी
अपनत्व लिए हुएहै वह
सच्ची मित्रता निभाती है
कभी धोखे में नहीं रखती |
आशा
Like
Comment

नारी वर्तमान में (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर )

 


 सुनहरी धुप प्रातः की 

जब भी खिड़की से झांकती 

नैनों से दिल में उतरती

दिल को बेचैन करती |

जब कभी विगत में झांकती

उसे याद करती मन से

 वही गीत गुनगुनाती फिर से

जो कभी उसने  गाया था मंच पर |

जितनी तालिया मिलीं थी

उनकी मिठास आज तक सुनाई देती

मधुर धुन कानों में गूंजती

मंजिल को सक्षम हो छूने के लिए |

 स्वप्न साकार हुआ था उसदिन

पहले अक्सर  सोचा करती थी

कब मुझको भी सफलता मिलेगी  

तालियों का उपहार मिलेगा |

मन  हुआ था उत्साहित 

समूचा कम्पित हुआ था तन मन  

 मंच पर पैर रखते ही

 तालियों की गूँज सुन कर  |

आज के युग की नारी हूँ

कदम पीछे कैसे  हटाती  

जो सुख मिला सफलता से

मस्तक उन्नत हुआ मेरा

तालियों के स्वागत से |

यही चाहत  भी  थी मेरी

अग्र पंक्ती में सदा रहने की

अपनी योग्यता साबित करने की

सोच था किसीसे कम नहीं मैं |

आशा 

 

 

बीती यादों में जब भी झाकोंगे


 

विगत में जब झांकोगे

स्वप्न सा गुजरेगा बीता कल

दृष्टि पटल के सामने से

पर ठहरेगा नहीं गति चाहे हो धीमीं |

जन्म जन्म का साथ है निभाने को

तुम भूल न जाना मुझे

मेरी भूली बिसरी यादों को

बिताए हुए उन सुखद पलों को |

जब भी बीते कल से गुजरोगे

मुझे नहीं भूल पाओगे

यही है संचित धन मेरा

उससे बच कर कैसे जाओगे |

 बीता पल मेरे दिल में

 बसा इतना गहरा  

कि उसका ओर छोर

 नजर नहीं आता |

पैर जमाए खडा धरती पर

  वजूद उसका  हिलने का

नाम ही  नहीं लेता   |

जब भी मन बीती यादों  की

गलियों  से गुजरता  

मन वहां रुकने का होता

                 दो क्षण ठहर ने के लिए  |                 पर मन है कि मानता नहीं 

वहीं जाना चाहता है

माया मोह को छोड़

तुमसे वही  बंधन बाँधने को |

आशा

07 मार्च, 2022

मन के जीते जीत

 


ह्रदय के हारे हार है

मन के जीते जीत

कोई उससे न करे प्रीत

जिसकी नहीं प्रीत  किसी से  |

बहुत देखा सुना समझा

दिया वास्ता जब उसने

कोई अर्थ नहीं निकल पाया

थी सच्चाई दूर बहुत |

 विश्वास उठ गया उस पर से

अब लगती वह भिन्न सब से

है  मेरा नजरिया या बहम मन का

सोच नहीं पाया अभी तक |

यदि सोच लिया होता

जजबातों  में न बहता नदिया सा

पैनी दृष्टि रखता

खुद को न बहकने देता |

  पहचान यदि गैरों की

मन में बस जाती

फिर कोई भूल न होती

अपनों में और गैरों की परख में  |

अपने तो अपने ही हैं

कोई सानी नहीं बाह्य  तत्वों से

करते हैं जितना दुलार दिल से

वही है सच्चा कोई दिखावा नहीं |

आशा

 

06 मार्च, 2022

सफलता तक पहुंची


 

दिग दिगंत में आसपास

कोई खींच रहा था उसको अपने पास 

 उस में खो जाने के लिए

जीवन जीवंत बनाने के लिए |

जागती आँखों से जो देखा उसने

 स्वप्न में न  देखा था कभी जिसे 

वह  उड़ चली व्योम में ऊंचाई तक

पर न पहुँच पाई आदित्य तक |

 ताप सहन न कर पाई जो था आवश्यक

गंतव्य तक पहुँचने  के लिए

उसने सफलता को जब  नजदीक पाया

मन खुशियों से भर आया |

सफलता उसने इतने करीब देखी न थी

 नैना भर आए थे उसके यह देख

दोबारा कोशिश की फिर से  

अब दूरी कुछ कम हुई दौनों में

पर पूरी तरह  सफल न हो पाई |

 आत्मविश्वास मन में आस्था ईश्वर पर   

 नाम लिया नटनागर का साहस जुटाया

अब आसान हुआ वहां पहुँच मार्ग

 चमक सफलता की रही  चेहरे पर |

आशा

05 मार्च, 2022

आँखों से पर्दा हटा है





                            प्यार क्या है दुलार किस लिए 

यह दिखावा किस लिए किसके लिए 

मन से तो ये भाव उपजते नहीं 

क्या हो गया उसे |

 वह उलझी रहती दिखावे में 

वह  है कितनी अलग सबसे 

अपने इस सतही  व्यवहार में 

 प्रयत्न अथाह  किये उसने |

असफलता ही हाथ लगी 

मन के भाव छिपाने में 

यह भी स्पष्ट नहीं मन में

 अब वह क्या करे |

किससे  सहायता मांगे 

मन की गुत्थी सुलझाने में 

न जाने क्यों भय बना रहता है 

कोई उससे दगा तो नहीं करेगा  |

यह संशय पनपा कैसे 

एक बार धोखा खाया है  उसने 

अब तो नजदीक जाने से भी 

भय  लगता है उसके |

कभी सोचती है मन के बारे में 

वह  इतनी कमजोर तो कभी न थी

भय ने अपना राज्य जमाया कैसे 

उसका अस्तित्व ही हिला कर रख दिया |

आत्म विश्वास डगमगाया है 

 इसी  कमजोरी ने पचास साल पीछे किया है 

वह उंगली पकड़ कर चलने में 

खुद को महफूज समझती है  |

प्यार से  दुलार से आँखों का पर्दा हटा है 

मन का विश्वास  जाने कब लौटेगा 

उसी पर सोचने की नीव टिकी है 

जीवन की सच्चाई यही है |

आशा