कभी कम न हो पाया
नदी के दो किनारे
समानांतर चलते गए साथ
कभी एक न हो पाए |
मन में सदा बेचैनी रही
आखिर कब मिलन होगा
प्रेम वैसा ही रहा
बहती नदिया सा |
जलधि तक पहुँच
नदी उस में मिली
चाह मन में रह गई
दौनों के मिलन की |
प्रारब्ध में यही था
हम दौनों के
फासला कभी भी
कम न हुआ
ना कभी होगा |
चाहे कितने भी
व्यवधान आए मार्ग में
पर मिठास कम न होगी
रंग में भंग न होगा |
आशा