18 मई, 2022

परिवार दिवस

                                                                 


                                                               पहले कहा जाता था 

हो परिवार  भरा पूरा

फिर कहा जाने लगा

हम दो हमारे दो |

 कभी किसीने न जाना

है महत्व इसका  क्या

अब मनने  लगा

विश्व परिवार दिवस |

जब अति जनसंख्या की हुई

और सीमित संसाधन  हुए 

घबराए  लोग जन संख्या बढ़ने से

वही विचार मन में आया

सीमित परिवार सुखी संपन्न  |

यह बात बारम्बार  दोहराई जाती

हो परिवार भरा पूरा

कभी यह बात कही जाती

छोटा परिवार ही सबसे अच्छा |

वह परिवार है सबसे अच्छा

बड़ा परिवार हो  या सीमित 

 जहां तालमेल हो आपस में

घर में खुशहाली हो

हों सभी एक मत विचारों में |

वह घर  स्वर्ग हो जाता

जहां  परिवार की बेल फले फूले

परिवार दिवस मनाना न पड़ता

सामंजस्य जब होता घर में |

16 मई, 2022

देश के रखवाले



तुम सपूत भारत के रखवाले अपने घरवार से बिछड़े 

 यह साहसिक कदम उठाया 

 परवाह न की कभी दीन दुनिया की 

देश हित में रमें अपनी जान जोखिम में डाली |

 कितनी भी विपरीत परिस्थितियां आईं  

हिम्मत कभी न हारी

 कर्तव्य से पीछे न हटे

 घरवार  प्रभु के भरोसे किया |

कर्तव्य पर हुए न्योछावर 

देश को है गर्व है

 उन  वीर सपूतों पर 

जिनने दी कुर्वानी देश के लिए 

जात पात का बंधन न माना

किया न्योछावर देश पर  खुद को |

धर्म ने कभी न बांटा एक बात याद रही

प्रथम कर्तव्य से बंधे हैं बाक़ी सब गौण

एक साथ मिल जुलकर रहे सीमा पर 

 हम हैं हिन्दुस्तान के रखवाले |

आशा

14 मई, 2022

हाइकु

 



                    कसमें वादे

                   जब भूलें भुलाएं

                    याद न आएं

 

तेरी कसम

यदि वो ना समझी

बेवफा हुई

 

खाओ कसम

 झूठ  नहीं बोलोगे

धोखा न दोगे

 

पक्के वादों के

कभी न पकड़ोगे

गलत राह

 

मध्य प्रदेश

है दिल भारत का

र्व है मुझे 

हम सिपाही

प्रदेश की सीमा के

रक्षा करते

 

क्षणिक नहीं

 यह आवेग नहीं

उत्साह भरा  

 

अभिनव है

प्रयोग जीवन में

सफलता के

 

जीवन नहीं

र्व है मुझे

कोई परिवर्तन

 खेल नहीं है



10 मई, 2022

कुछ तुम बदलो कुछ मैं

 

 




कुछ तुम बदलो कुछ मैं  

तब सामंजस्य बना रहेगा हम दौनो के  बीच

व्यर्थ का तर्क कुतर्क

अशान्त नहीं करेगा अपने जीवन को |

स्पष्ट संभाषण है जरूरी

जीवन की गाड़ी चलाने में

किसी के कहने से

 कुछ नहीं बदलेगा

चाहे पूंछ लो जमाने से |

अपने गिरह्वान में झांको

अपनी कमियां स्वीकारो

उनका एहसास करो  

कुछ मुझे भी समय दो सोचने का |

यदि यही बात समझ पाओगे

जीवन जीने की कला आ जाएगी

महक जिन्दगी में होगी

बेनूर जिन्दगानी  ना होगी |

किसी की सलाह पर 

कब तक चलोगे 

जहां से चलना था वहीं ठहर जाओगे 

जिन्दगी में आगे न बढ़ पाओगे |  

आशा  

 

08 मई, 2022

मेरी माँ

 

माँ तुम्हारी ममता ने

प्यार दुलार ने सुख दुःख में

सर हाथ से सहलाना

मैं आज तक भुला नहीं पाई |

बचपन में जब भी जरासी

तबियत बिगड़ जाती थी

खुद खाना पीना छोड़

मुझे सम्हालती रहती थीं |

कभी डाटा नहीं सिर्फ समझाया 

मुझे मिला संबल जब प्यार से समझाया

कभी उदास न होने दिया

ना ही कोई कमीं रखी

चाहे कितनी ही कठिनाई आई

 मैंने तुम्हारे आँचल में शरण पाई |

जब बचपन में शरारत करती थी

तुम्ही मुझे प्यार से समझातीं थी

धूल धूसरित घर आती

 तब जरूर डाट खाती थी

जान जाती थी  गलती अपनी |

तुमने जानी मेरी क्या थी समस्या

 खुद ने अपना सारा जीवन  किया

 निसार उचित अनुचित का ज्ञान दिया

 हर कदम पर ध्यान दिया |

मार्ग दर्शक तुम्हे बनाया  

सबल सफल व्यक्तित्व जो आज है

है  तुम्हारी  ही देन  

पहले नहीं थी समझ मुझे

 जब माँ बनी तब 

माँ का जीवन देखा 

अब समझ आया |

 मेरी माँ सब से अच्छी

इस दुनिया में

हर सफलता है देन तुम्हारी 

अब मेरी समझ में आया |

आशा

 

मन का आयना

 



वह है  आयना तेरे मन का

मन की छाया 

तेरे चहरे पर पड़ती

मन में क्या चल रहा है

वही सत्य उगलती |

कोई भी आयना झूट नही बोलता

वही दिखाता है जो मन में होता है

वह कोई मुखौटा नहीं

जो बदले भाव दिखाए |

जो सच का आदर्श दिखाई देता उसमें

कितनी भी बात छिपाने की कोशिश हो

सत्य उजागर हो ही जाता इसके माध्यम से

सारे भेद खुल जाते उसमें झांकने में  |

वही सत्य जो तुमने छिपाया जमाने से 

आयने से छुपा न सके 

कितना भी छुपाओ 

उससे बच कर कहाँ जाओगे 

मन के भावों के उजागर होने से 

बच  न पाओगे मन साफ रहेगा 

तब कोई चिंता नहीं होगी 

तुम्हारी छवि धूमिल न होगी |

आशा  



05 मई, 2022

हूँ दैनिक वेतन भोगी

 हूँएक दैनिक वेतन भोगी 

नेत्र खुलते ही  सुबह होती है 

धुदलका होते ही घर जाने की जल्दी में 

चल देता हूँ अपने बसेरे में |

सड़क के किनारे पेड़ के नीचे 

लकडियाँ  जला रोटी बना लेता हूँ |

फिर बाँध कर सामान  एक कपडे में 

झाड के ऊपर रख लेता हूँ |

वही है असली विश्राम घर मेरा रात भर के लिए |

सुबह सवेरे सुलभ   काम्प्लेस में 

नित्य कर्म से निवृत्त हो चल देता 

काम की तलाश में |

नहाता धोता हूँ  कभी वैसा ही रह जाता हूँ 

जब अवसर नहीं मिलता |

सारे दिन का बेतन दो  टाइम का भोजन दे सकता है

 पर घर भेजने को कुछ भी नहीं |

अपने धर वालों को गाँव भेज दिया है 

 बुजुर्गों की देख रेख के लिए |

और मैं क्या करता कोई और तरीका नहीं सूझा मुझे |

वे भी दिन भर काम करते हैं वहां 

उन्हें शिकायत रहती है मुझसे कोई भी मुफ्त रोटी नहीं देता 

हाड़ की बूँद बूँद सोख लेता है |

 उनके लिए क्या किया मैंने ?शिकायत वाजिब है यह

मैं अपने कर्तव्य पूर्ण नहीं कर पाता यहीं मैंने मात खाई है 

दो अक्षर भी ध्यान से नहीं पढ़े यदि पढ लिया होता

आज यह दिन न देखना पडता |

पर समय बीत गया  अब पछताने से क्या लाभ 

लॉग डाउन होने पर   कितने ही दिन भूखा रहा 

केवल पानी से ही काम चलाया फिर विचार आया 

वेतन  न मिला फिर धन  के अभाव में 

 पैदल ही चल दिया अपने गाँव 

 बीबी बच्चों के पास |

आशा