12 सितंबर, 2022

हिन्दी की विशेषता

 है हिन्दी हमारी मातृभाषा 

हमें है  प्यार उससे  

कारण नहीं समझ से बाहर 

लिपि है  बहुत  सरल उसकी  |

कितनी भाषाएँ मिलीं है उससे 

 जल में शक्कर मिली हो जैसे |

उन शब्दों   को यदि  खोजा जाए 

वे स्पष्ट नहीं दिखते अलग से 

अपना अस्तित्व  ही खो देते 

 दूध में  शक्कर जैसे |

सरल है   भाषा विज्ञान और व्याकरण   

भिन्न हैं विधाएं लेखन की 

बहुत सम्रद्ध है साहित्य उसका 

अथाह भण्डार भरा पुस्तकों से  |

मन चाहे जितना  अध्यन करो 

मन अतृप्त ही रहता 

तभी कहा जाता है

 हिन्दी है माथे की बिंदिया 

बढ़ता सौंदर्य साहित्य का इससे |

 अन्य भाषा के शब्दों से मिलकर 

 एक सामान व्यबहार होता है यहाँ 

सभी भाषाओं के शब्दों से 

जब मिल जाते  हैं आपस में 

कोई भेद नहीं होता उनसे |

है यही विशेषता मेरी मातृभाषा की 

तभी है प्यारी मुझे हिन्दी दिल से |

आशा सक्सेना 




क्षणिकाएं

 १-ओ आज के प्यारे मौसम 

तुम्हारे इन्तजार नें आँखे तरसी 

 किस कारण नहीं बताया तुमने 

बिना बात इन्तजार में उलझाया तुमने |


२-कभी तेज बारिश कभी सूखा मौसम 

इतना अटपटा व्यवहार किस लिए 

किसने सिखाया तुम्हें ऐसा किसलिए 

अपने अभाव में आम जन को तरसाया तुमने |

३-

जल के अभाव् में कितना कष्ट हुआ होगा  

यह तुम कैसे जानोंगे तुम ठहरे पाषाण ह्रदय 

जो दुर्गति हुई सब की उसे कैसे पहचानोंगे 

तुम्हें नहीं लगाव किसी से हमने तुम्हें पहचान लिया

 है अब क्या फ़ायदा एक ही  बात दोहराने का  

हमने सब भाग्य पर छोड़ दिया है |


आशा सक्सेना 

10 सितंबर, 2022

हाइकू

 


१-यही है प्यास

मेरे मन की आस 

मुझे खुशी है

२-दिल दीवाना

नहीं  बेगाना तेरा

मुझ सा नहीं

३- राम भरोसे

सब छोड़ दिया है  

हुई सुखी मैं

४-हुए विलीन

पञ्च तत्व में यहीं

दुनिया छोड़ी

५-तुम ने छोड़ा

मोह दीन  दुनिया

हुए स्वतंत्र

६-न मोह माया

ना ही कोई बंधन

जीवन मुक्त

७-यादों  में रहो

 ये बंधन जन्मों का 

तुम्हें नमन 

आशा सक्सेना 


09 सितंबर, 2022

तुम दूर हुए मुझसे

 

 

 जब बांह थामी थी मेरी

 वादा किया था साथ निभाने का 

जन्म जन्मान्तर का साथ अधूरा क्यों छोड़ा?

आशा न  थी मध्य मार्ग में  बिछुड़ने की 

उस वादे का क्या जो जन्म जन्मान्तर तक

 साथ निभाने का किया था

जब किया वादा सात वचनों का  

 मुझे अधर में छोड़ा और विदा हुए 

यह भी न सोचा कि  मेरा क्या होगा `

 जीवन की कठिन डगर एक साथ पार की

जब सारी जुम्मेदारी मिलकर झेली 

फिर जीवन से क्यूँ घबराए

मुझे भी तो संबल की आवश्यकता थी तुम्हारी  

यह तुम कैसे भूले न कुछ कहा न सुना 

मेरे  मन को झटका लगा यह क्यूं भूले 

अकेली  मुझे  मझधार में छोड़ दिया 

जाते तब पता अपना तो बता जाते 

मैं भी तुम्हारे पीछे आ जाती

बाधाओं से न घबराती  


आशा लता सक्सेना

                                                                                                 

 

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07 सितंबर, 2022

मैंने तुमसे बहुत कुछ सीखा है

 

 

मैंने तुम से बहुत कुछ सीखा है

शयद कुछ और नहीं

कई बार कभी तालमेल न हो पाता

मुझे बहुत क्रोध आता था

तभी मैं जान पाती था अपनी कमियाँ

अपने पर नियंत्रण रख पाना

बहुत कठिन होता था

मुझे लज्जा का अनुभव होता

फिर आंसुओं का सैलाब उमढता

उन्हें पौछ्पाने के लिए

कोई रूमाल आगे नहीं आता

यह अधिकार केवल तुम्हें दिया था मैंने |

अब सोचती हूँ कौन सांत्वना  देगा

अब मुझे तुम न जाने किस दुनिया में खो गए हो

 अब कैसे अपना समय बिताऊंगी

 जीवन माना क्षणभंगुर है

 क्षण क्षण बिताना बहुत कठिन है

 |कभी लगता है तुम्हें मुक्ति मिल गई है

बस एक ही बात का दुःख है

तुमने मुझे अकेला अधर में क्यों छोड़ा

अपना वादा क्यों तोड़ा |

आशा लता सक्सेना

 

26 अगस्त, 2022

क्या लिखूं क्या नहीं

 बारम्बार  लिखना लिखाना 

फिर खोजना क्या नवीन लिखा 

पर निराशा में डूब जाना 

कुछ  नया न लगा नए लेखन में |

बहुत बार पढ़ा पर मन असंतुष्ट रहा 

कागज़ ढूंडा  कलम ढूँढी पर मिल न पाई 

 यूंही घूमता रहा अपने कमरे में

 किसी से सलाह लेनी चाही पर

  सही सलाह न मिली  अपनों से 

सोचा जब तक सही  राह न खोजूंगा 

उलझा रहूँगा इसी कार्य में |

 मन ने कहा दूरी न बढाऊँ 

हार  में जीत का मार्ग खोजूं 

असफलता से न घबराऊँ |

जब  असफलता हाथ चूमेंगी 

पर मैं साहस का हाथ  पकडे रहूँगा 

पीछे मुड़ कर न देखूंगा 

तभी सफलता पा सकूंगा 

अपना मनोबल बनाए रखूँगा |

तब जो भी नया सृजन करूंगा 

एहसास होगा कुछ नया लिखने का 

नव लेखन की विधाओं की महक होगी 

नए लिखे पंक्तियों में |

 धैर्य भी  है  आवश्यक प्रतिफल को पाने के लिए 

जिसने इससे मिल कार्य किया  

सफलता का मुंह  देख पाया 

 नवीन सृजन का आनन्द उठा पाया |


आशा सक्सेना 


25 अगस्त, 2022

क्षणिक जीवन में झमेले हजार

 छोटे से जीवन में हैं झमेले हजार 

उनमें ही उलझे रहते   बच नहीं पाते

 समय की बर्बादी के सिवाय कुछ हाथ नहीं आता 

अपने आप को असहाय पा कर  |

कोशिशें बार  बार  करते 

पर निकलने की सभी कोशिशों में

 उलझ कर रह जाते सफल न हो पाते |

 सुनने मेंअच्छा लगता है 

असफलता ही राह होती है सफलता तक  पहुँचाने  के लिए की 

 उसके कदम चूमते ही जो बेचैनी होती है 

मन को समूचा  हिला कर रख देती है

कभी भी असफलता मन को  नहीं भाती  |

 असफलता से अपनी  खुद की कमजोरी छिपाने से  

क्या लाभ और क्या हानि 

सब से नजरें छिपाने से

 खुद के सिवाय किसी को |

झमेलों  के  गर्त में गिरते गए 

वहीं उलझ कर रह गए 

क्षणिक जीवन में हैं झमेले हजार 

अब हमने समझ लिया  

कोई  इनसे बच कर नहीं निकलता  

इनके बिना जीवन अधूरा रहता 

आशा सक्सेना