तुमने यह कैसा नेह किया ,कितना सताया तुमने |
ना ही कभी पलट कर देखा ,राह भी देखी उसने |
प्रीत की पेंगें बढ़ाई क्यूं ,तुम तो कान्हां निकले |
याद न आई राधा उनको ,जब गोकुल छोड़ चले |
आशा
ना ही कभी पलट कर देखा ,राह भी देखी उसने |
प्रीत की पेंगें बढ़ाई क्यूं ,तुम तो कान्हां निकले |
याद न आई राधा उनको ,जब गोकुल छोड़ चले |
आशा
......बहुत सुन्दर लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंओह! विरह की सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.नई पोस्ट आज जारी की है.
वाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंवाह,क्या बात है,आशा जी.
जवाब देंहटाएंप्रीत की पेंग बढ़ाई क्यूं ,तुम तो कान्हां निकले |
जवाब देंहटाएंयाद न आई राधा उनको ,जब गोकुल छोड़ चले |
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
बहुत सुन्दर रचना ! कान्हा पर यह कटाक्ष अच्छा लगा ! बधाई !
जवाब देंहटाएंबेहद खुबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंब्रज की यादें ताज़ा कर दीं आपने
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .
सुन्दर भावो की खूबसूरत अभिव्यक्ति....आभार..
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में सुंदर अभिवक्ती.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंविरह की सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने|आभार|
जवाब देंहटाएंछोटी मगर संपूर्ण बात कहती...
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