12 सितंबर, 2011

तुम तो कान्हां निकले


तुमने यह कैसा नेह किया ,कितना सताया तुमने |
ना ही कभी पलट कर देखा ,राह भी देखी उसने |
प्रीत की पेंगें बढ़ाई क्यूं ,तुम तो कान्हां निकले |
याद न आई राधा उनको ,जब गोकुल छोड़ चले |
आशा

14 टिप्‍पणियां:

  1. ओह! विरह की सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने.

    मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.नई पोस्ट आज जारी की है.

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  2. प्रीत की पेंग बढ़ाई क्यूं ,तुम तो कान्हां निकले |
    याद न आई राधा उनको ,जब गोकुल छोड़ चले |

    संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...

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  3. बहुत सुन्दर रचना ! कान्हा पर यह कटाक्ष अच्छा लगा ! बधाई !

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  4. सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार



    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .

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  5. सुन्दर भावो की खूबसूरत अभिव्यक्ति....आभार..

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  6. बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति .....

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  7. कम शब्दों में सुंदर अभिवक्ती.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  8. विरह की सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने|आभार|

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  9. छोटी मगर संपूर्ण बात कहती...

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