19 जुलाई, 2011

है मौन का अर्थ क्या




तुम मौन हो ,
निगाहें झुकी हैं
थरथराते अधर
कुछ कहना चाहते हैं |
प्रयत्न इतना किस लिए
मैं गैर तो नहीं
सुख दुःख का साथी हूँ
हम सफर हूँ |
दो मीठे बोल यदि ना बोले
सीपी से सम्पुट ना खोले
तब तो ये अमूल्य पल
यूं ही बीत जाएंगे |
मैं समझ नहीं पाता
मौन की भाषा
कुछ सोच रहा हूँ
चूडियों की खनक सुन |
है शायद यह अंदाज
प्यार जताने का
फिर भी दुविधा में हूँ
है मौन का अर्थ क्या |
आशा

18 टिप्‍पणियां:

  1. खूब कहा , अभिव्यक्तिओं का गहन चित्रण बधाई

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  2. बहुत सुन्दर शब्दों में भावों को अभिव्यक्त किया..आभार...

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  3. इस मौन का अर्थ समझने में सदियाँ बीत जाती हैं और पुरुष उसे समझ नहीं पाता और अर्थ के अनर्थ हो जाते हैं ! सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  4. दीदी आप की कविताओं में सहजता की प्रधानता होते हुए भी गहरी संवेदनाएँ अक्सर पढ़ने में आ रही हैं|

    अपनी कविताओं को पढ़वाने का यह क्रम जारी रखिएगा

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  5. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    .........गहन चित्रण बधाई

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  6. वाह....बहुत प्यारी सी है ये मौन की भाषा

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  7. आदरणीया आशा जी हार्दिक अभिवादन सुन्दर रचना मौन बहुत कुछ कह जाता है मौन रह के भी ...निम्न पंक्ति गजब की


    हम सफर हूँ |

    दो मीठे बोल यदि ना बोले

    सीपी से सम्पुट ना खोले

    तब तो ये अमूल्य पल

    यूं ही बीत जाएंगे

    धन्यवाद -शुभ कामनाएं
    शुक्ल भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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  8. मौन भी कभी- कभी बहुत खुच कह जाता है... बहुत ही सार्थक अभिवयक्ति...

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