उडती चिंगारी ,सुलगती आग
बढता जन आक्रोश
फिर भी मतलब के लिए
अपने हाथ सेकते लोग
सारा ही वर्ष बीता
अस्थिरता के आगोश में
हादसे बढ़ते गए
बर्बर प्रहार होते रहे
विश्वास क़ानून पर न रहा
प्रजातंत्र शर्मसार हुआ
कोई भी सुरक्षित नहीं
क्या वृद्ध क्या नाबालिग
पुरुष हों या महिलाएं
आहत जनमानस हुआ
कुछ ही काला धन निकला
भ्रष्टाचार फला फूला
नैतिकता का अवमूल्यन
देख शर्म से सर झुकता
मन में भावअसुरक्षा का
गहरा पैठता जाता
चरित्र हनन ,शील हरण
वीभत्स हादसे हुए आम
ये दुखद बढती घटनाएं
मानवता को झझकोर रहीं |
है आकांक्षा यही
आने वाला वर्ष इस जैसा न हो
साम्राज्य अमन चैन का हो
साम्राज्य अमन चैन का हो
वरद हस्त ईश्वर का हो |
आशा