08 जून, 2012

है नई डगर

अनजान नगर 
नई डगर 
सभी अजनवी
सभी कुछ नया
कोई अपना नजर नहीं आता
जो भी पहले देखा सीखा
सब पीछे छूट गया
हैं यादें ही साथ
पर इसका मलाल नहीं
रीति रिवाज सभी भिन्न
नई सी हर बात
अब तक रच बस नहीं पाई
फिर भी अपनी सारी इच्छाएं
दर किनारे कर आई
जाने कब अहसास
अपनेपन का होगा
परिवर्तन जाने कब होगा
अभी तो है सभी अनिश्चित
इस डगर पर चलने के लिए
कई परीक्षाएं देनीं हैं
मन पर रखना है अंकुश
तभी तो कोई कौना यहाँ का
हो पाएगा सुरक्षित
जब सब को अपना लेगी
सफल तभी हो पाएगी 
है यह इतना सरल भी नहीं
पर वह जान गयी है
हार यदि मान  बैठी
लंबी पारी जीवन की
कैसे खेल पाएगी |
आशा

11 टिप्‍पणियां:

  1. नयी नवेली के लिए बहुत प्यारा लिखा आपने...

    सादर.

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  2. एक दिन सब को अपना लेगी
    और सफल हो जाएगी ... सुन्दर भाव... आभार

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  3. एक दिन सब को अपना लेगी
    और सफल हो जाएगी .... yahi viswash to hame aage bada dega.....behtreen....

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  4. पर वह जान गयी है
    हार यदि मान बैठी
    लंबी पारी जीवन की
    कैसे खेल पाएगी |

    सुंदर प्रस्तुति ,,,,,

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

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  5. 'अब तक रच बस नहीं पाई
    फिर भी अपनी सारी इच्छाएं
    दर किनारे कर आई'
    यही कहा था प्रसाद जी ने -
    'आँसू से भीगे आँचल पर मन का सब कुछ रखना होगा,
    तुमको निज स्मिति रेखा से यह संधि-पत्र लिखना होगा .'

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  6. नई डगर के नए एहसास ...बहुत खूब

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  7. सुन्दर रचना और एक नव वधू की मानसिकता का सही चित्रण ! सच है -

    जब सब को अपना लेगी
    सफल तभी हो पाएगी !

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  8. एक नव वधु के मन की ऊहापोह का बहुत ही सुन्दर चित्रण ! बहुत प्यारी रचना ! सही कहा आपने ---
    जब सब को अपना लेगी
    सफल तभी हो पाएगी
    है यह इतना सरल भी नहीं
    पर वह जान गयी है
    हार यदि मान बैठी
    लंबी पारी जीवन की
    कैसे खेल पाएगी |

    जवाब देंहटाएं

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