30 दिसंबर, 2013

नया कुछ करना है

सुस्वागतम
ए नव वर्ष आज 
खिले सुमन

नव बर्ष शुभ और मंगलमय हो |


नव रस में भीगा
नव वर्ष आने को है
नया कुछ करना है
आने वाले के स्वागत में |
आगे कदम बढ़ाना
जीवन से सीखा है
सुख दुःख होते क्षणिक
उनको बिसराना है |
कई अनुभव किये संचित
बीते वर्षों में
उनको ही आधार मान
 कुछ विशिष्ट  करना है |
जो भी हो नवल
 प्रेरक प्रोत्साहक
उसे सहेज कर
 प्रसारित  करना है |
यह अनुभवों की धरोहर
कुछ नया कराएगी
नवरसों का स्वाद
सब में जगाना है |
आने को है नया साल
अभिनव प्रयोग करना है
नव वर्ष का अभिन्दन
सब भूल कर करना है |
आशा

29 दिसंबर, 2013

खिलती धूप

उड़े पखेरू 
पंख फैला पक्षी सा 
मन उड़ता |

खिलती धुप 
दमकता चेहरा 
प्यारा लगता |


आशा

27 दिसंबर, 2013

हाइकू (४)

(१)
फूल भ्रमर 
प्यार का इज़हार
या उपकार |
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उपकार का
यदि सिलसीला  हो
 कृपण न हो
 (२)
आँखे बरसीं
पहली बारिश सी 
सूखा न रहा |
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रहा अधूरा 
जीवन तेरे बिन 
सूना ही रहा 
(३)
सूना जीवन 
बेरंग तेरे बिना
कुछ भाए ना |
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भाए ना यह 
रंग भरी ठिठोली 
तुम आजाना |
(4)
बिखरी यादें
समेटने की चाह
है गलत क्या|
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क्या बिगड़ता
यदि समझी होती
मन की बात |
(५)
कठिन राह
पहुँच न पाऊंगा
हो चाँद तुम |
(५)
बहती जाती  
नौका मझधार में  
हो पार कैसे |
बहता जल
है तरंगित मन
हरीतिमा सा |
आशा


25 दिसंबर, 2013

गुणों की टोकरी


Photo: ღ A World of Flowers for You ღ

वह नाजुक नन्ही कली
लगती गुणों की टोकरी
हर पुष्प जिसका
सुरभि चहु दिश फैलाता
है किसकी सुगंध अधिक
मन सोच नहीं पाता
और विशिष्ट उसे बनाता |
माता पिता उसे सवारते
विकास में सहयोग करते
रूप रंग गुणों का
बखान करते नहीं थकते |
जो भी संपर्क में आता
बिना कहे न रह पाता
हैं कितने भाग्यशाली
ऐसी सुशीला  को पाया
है धन्य उसकी जननी
गुण संपन्न उसे बनाया
जिस घर की वह शोभा होगी
बड़े  जतन से सहेजेगा
फूलों की टोकरी को
बिखरने नहीं देगा |
आशा |

22 दिसंबर, 2013

हाइकू (३)

(१)
शिक्षा की देन
अभिनव  अनूप 
वह है  यहीं   |
(2)
थे जब साथ
कितना सुहाना था
यह मौसम |
(३)
 मौसम यहाँ
एकसा न रहता
बदल जाता |
(४)
सुर व साज 
मधु रस में घुली 
मीठी आवाज|
(५)
आवाज तुम
हो साज की मिठास
हैं श्रोता हम |
(६)
बहती जाती
नौका मझधार में
पार हो कैसे |
(7)
कैसे मनाऊँ
मैं दिल को अपने
जाना ही नहीं |



21 दिसंबर, 2013

फूल और ओस

(१)
 फूल क्या जिसने
 ओस से प्यार न किया हो
भावों में बह कर उसे
बाहों में न लिया हो |
(२)
टपकती  ओस
ठिठुरन भरी सुबह की धुप
देखे बिना चैन नहींआता
ओस में नहाया पुष्प
अनुपम नजर आता |
(३)
फूलों की फूलों से बातें
 कितनी अच्छी लगती हैं
प्यार भरी ये सौगातें
मन को सच्ची लगती हैं |

19 दिसंबर, 2013

यह क्या हुआ



हरे भरे इस वृक्ष को
यह क्या हुआ
पत्ते सारे झरने लगे
सूनी होती डालियाँ |
अपने आप कुछ पत्ते
पीले भूरे हो जाते
हल्की सी हवा भी
सहन न कर पाते झर जाते
डालियों से बिछुड़ जाते |
डालें दीखती सूनी सूनी
उनके बिना
जैसे लगती खाली कलाई
चूड़ियों बिना |
अब दीखने लगा
पतझड़ का असर
मन पर भी
तुम बिन |
यह उपज मन की नहीं
सत्य झुटला नहीं पाती
उसे रोक भी
नहीं पाती |
बस सोचती रहती
कब जाएगा पतझड़
नव किशलय आएँगे
लौटेगा बैभव इस वृक्ष का |
हरी भरी बगिया होगी
और लौटोगे तुम
उसी के साथ
मेरे सूने जीवन में |

आशा