गुर स्वावलंबी होने का
पिता ने बलवान बनाया
'निडर बनो '
यह पाठ सिखाया
बड़े लाड़ से पाला पोसा
व्यक्तित्व विशिष्ट
निखर कर आया
बचपन से ही सुनी गुनी
कहानियां बहादुरी की
देश हित उत्सर्ग की
मन में ललग जगी
सेना में भर्ती होने की
दृढ़ निश्चय रंग लाया
सिर गर्व से उन्नत हुआ
की सरहद की निगहवानी
अब हमारी सरहद को
कोई कैसे लांघ पाएगा
आत्मबल से आच्छादित
रक्षा कवच दृढ़ता का
कोई कैसे तोड़ पाएगा |
आशा
वीरों को प्रणाम। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआभार ||
श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सुद्नर कविता इन वीरों को मेरा सादर प्राणम
जवाब देंहटाएंखुशबू
प्रेमविरह
सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंवीरों को सादर नमन....
सुन्दर अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंrecent postमेरे विचार मेरी अनुभूति: पिंजड़े की पंछी
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंrecent postमेरे विचार मेरी अनुभूति: पिंजड़े की पंछी
AABHAR
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ! इन वीर जवानों की बहादुरी और निष्ठा की वजह से ही हम अपने घरों में सुरक्षित रहते हैं ! इनकी वीरता को सलाम !
जवाब देंहटाएंsundar rachna .....deshprem se labrej.......
जवाब देंहटाएंराष्ट्र के बहादुर प्रहरियों को नमन !
जवाब देंहटाएंराष्ट्र के बहादुर प्रहरियों को नमन !
जवाब देंहटाएंवीर जवानों को नमन,सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जज़्बा ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ....!!
बहुत सुंदर जज़्बा ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ....!!