22 फ़रवरी, 2013

रक्षक सरहद का

माँ ने सिखाया
 गुर स्वावलंबी होने का
पिता ने बलवान बनाया 
'निडर बनो '
यह पाठ सिखाया 
बड़े लाड़ से पाला पोसा 
व्यक्तित्व विशिष्ट 
निखर कर आया 
बचपन से ही सुनी गुनी 
कहानियां  बहादुरी की 
देश हित उत्सर्ग की 
मन में ललग जगी 
सेना में भर्ती होने की 
दृढ़ निश्चय रंग लाया 
सिर गर्व से  उन्नत हुआ 
की सरहद की निगहवानी
अब हमारी सरहद को 
कोई कैसे लांघ पाएगा 
आत्मबल से आच्छादित 
रक्षा कवच दृढ़ता का 
कोई कैसे तोड़ पाएगा |
आशा 

17 टिप्‍पणियां:

  1. श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुद्नर कविता इन वीरों को मेरा सादर प्राणम


    खुशबू

    प्रेमविरह

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर रचना ! इन वीर जवानों की बहादुरी और निष्ठा की वजह से ही हम अपने घरों में सुरक्षित रहते हैं ! इनकी वीरता को सलाम !

    जवाब देंहटाएं
  4. राष्ट्र के बहादुर प्रहरियों को नमन !

    जवाब देंहटाएं
  5. राष्ट्र के बहादुर प्रहरियों को नमन !

    जवाब देंहटाएं
  6. वीर जवानों को नमन,सुंदर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर जज़्बा ...
    बहुत अच्छी रचना ....!!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर जज़्बा ...
    बहुत अच्छी रचना ....!!

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: