20 जनवरी, 2014

कल्पना साकार न हुई



कल्पना छोटे से घर की
जाने कब से थी मन में
सपनों में दिखाई देता वह 
 और आसपास की  हरियाली
जहां बिताती घंटों बैठ
कापी कलम  किताब ले
पन्ने भावों के भरती
कल्पना साकार करती
पर सपना सपना ही रह गया
कभी पूर्ण कहीं हुआ
व्यवधान नित नए आए
विराम उनका  न लगा 
रुक नहीं पाए
ऊपर से महंगाई के साए
दो कक्ष भी पूरे न हुए
घर अधूरा रहा
प्रहार मन पर हुआ
 यदि एक ही लक्ष होता
मन नियंत्रित होता
तभी स्वप्न साकार होता
केवल कल्पना में न जीता |
आशा

14 टिप्‍पणियां:

  1. आ० सुंदर भाव प्रस्तुत करती आपकी बढ़िया कृति , धन्यवाद
    ॥ जय श्री हरि: ॥

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  2. बढ़िया प्रस्तुति--
    आभार आदरणीया-

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  3. सुंदर कल्पना ! यथार्थ की तो पूर्ण हो चुकी वर्षों पहले ! अब यह स्वप्न वाली कल्पना भी साकार हो जाये यही शुभकामना है ! हा हा हा !

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  4. धन्यवाद ब्लॉग पर आने के लिए |

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