15 मई, 2014

दो तोते


दो तोते बैठे 
 वृक्ष के तने पर 
आपस में बतियाते 
वर्तमान पर चर्चा करते |
उदासी का चोला ओढ़े 
यादे अपनी ताजा करते 
पहले कितनी हरियाली थी 
हमजोलियों की टोलियाँ थीं |
बड़े पेड़ कटते गए 
मित्र तितरबितर हो गए 
आधुनिकता की बली चढ़ गए 
मानव ही बैरी हो गया 
सृष्टि के संतुलन का |
हरियाली का नाश किया 
सीमेंट लोहे  का जंगल उगाया 
यही कारण हो गया 
हम सब की बदहाली का  |
रैन बसेरा नष्ट हो गया 
आज है यह हाल
 कल न जाने क्या होगा 
अभी बैठे हैं यहाँ 
कल न जाने कहाँ होंगे |
आशा 


13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (16.05.2014) को "मित्र वही जो बने सहायक " (चर्चा अंक-1614)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. सार्थक सदेश देती बेहतरीन प्रस्तुति ! पंछियो की इस व्यथा को हम मानव कभी समझ नहीं पाते ! एक सम्वेदनशील रचना !

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    1. अरे भाई हिन्दी में टिप्पणी कैसे |
      टिप्पणी हेतु धन्यवाद |

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  3. अपने स्वार्थ में अंधा हो गया है इंसान !

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    1. आपको टिप्पणी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद |
      आशा

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  4. जब तोते इंसानों की करनी को भोगने पर मजबूर होते हैं तब उनका रोना एक संवेदनशील इंसान ही सुन सकता है
    बहुत बढ़िया सन्देश

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  5. सार्थक संदेश देती कविता।

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  6. प्रकृति के संतुलन को कायम रख कर ही हम अपने आस्तित्व को कायम रख सकेंगे.

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