28 मई, 2019

अभाव हरियाली का





खँडहर में कब तक रुकता
आखिर आगे तो जाना ही है
बिना छाया के हुआ बेहाल
बहुत दूर ठिकाना है
थका हारा क्लांत पथिक
पगडंडी पर चलते चलते
सोचने को हुआ बाध्य
पहले भी वह जाता था
पर वृक्ष सड़क किनारे थे
उनकी छाया में दूरी का
तनिक भान न होता  था
मानव ने ही वृक्ष काटे
धरती को बंजर बनाया
 कुछ ही पेड़ रह गए हैं
वे भी छाया देते नहीं
खुद ही धूप में झुलसते 
लालची मानव को कोसते
जिसने अपने हित के लिए
पर्यावरण से की छेड़छाड़
अब कोई उपाय न सूझता
फिर से कैसे हरियाली आए
  पथिकों का संताप मिटाए |
आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति आशा दी

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नमन आज़ादी के दीवाने वीर सावरकर को : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    सूचना के लिए आभार सर |

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचना ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ३ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. सच है ! अपनी नासमझी का मूल्य हर इंसान को चुकाना होगा
    सडकों के किनारे सुनसान रास्तों पर हरे छायादार पेड़ों को लगाना होगा ! !

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: