22 अगस्त, 2019

हथकड़ी



बंधे  हाथ दोनो
समाज के नियमों से
है बंधन इतना सशक्त 
तिलभर भी नहीं  खसकता
कोई इससे बच  नहीं पाता 
यदि बचना भी चाहे तो
वह नागपाश सा कसता  जाता
यदि कोई इससे भागना चाहता 
भागते भागते हार जाता
पर कभी यह प्यारा भी लगता
सामाजिक बंधन बने हुए
कुछ नियमों से
हित छिपा होता इनमें
समाज के उत्थान का
हूँ एक सामाजिक प्राणी
वहीं मुझे जीना मरना है
तभी तो भाग नहीं पाती इससे
खुद ही बाँध लिया  है
इसमें अपने को  
अपनी मन मर्जी से  |
आशा


9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरूवार 22 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 22/08/2019 की बुलेटिन, " बैंक वालों का फोन कॉल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. कुछ बंधन इतने प्यारे होते हैं कि मन आजादी चाहता ही नहीं...
    अच्छी रचना!

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  4. सुप्रभात
    मेरी रचना पर टिप्पणी के लिये वाणी जी |

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  5. मर्जी से बांधा हुआ बंधन भी एक तरह की आजादी है

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  6. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद अनीता जी |

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  7. सत्य है ! मनुष्य बाह्य श्रन्खलाओं की अपेक्षा अपने मन की श्रंखलाओं से ही अधिक जकड़ा होता है ! सुन्दर रचना !

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