है बहुत पुरानी बात
अचानक आज याद आई
भूली भटकी यादों को
अब कहाँ समेटा जाए |
मस्तिष्क में अब
रिक्त स्थान नहीं है
इस याद को कहाँ समेटूं
कहाँ दूं स्थान इसे |
कैसे इसे याद रखूँ
किसी बात से जब मन दुखे
उसे भूलना ही अच्छा है
जीवन सहज चलने के लिए है अति आवश्यक |
तुम से नेह कभी कम न हुआ
उसे जीवन भर का संचित धन समझा
है वही अनमोल मेरे लिए
प्रभु भक्ति से बढ़ा कम न हुआ |
अब तो आदत सी हो गई है
तुम्हारी यादों के संग जीवन बिताने की
उनसे दूर हो कर जी नहीं पाऊँगी
तुमसे यदि न कही किससे कहूंगी |
आशा
सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद सर |
सूचना हेतु धन्यवाद दिग्विजय जी |
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार रविन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति। शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पुरुषोत्तम जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंकिसी बात से जब मन दुखे
जवाब देंहटाएंउसे भूलना ही अच्छा है
जीवन सहज चलने के लिए है अति आवश्यक
सार्थक एवं प्रेरक पंक्तियां
धन्यवाद वर्षा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएं|
लाजवाब अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंयादों पर बहुत कुछ लिखा जा चुका
और बहुत कुछ है बाकी।
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धन्यवाद रोहित जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंआस्था की बयार है आपकी ये रचना आशा जी, प्रणाम।
जवाब देंहटाएंतुम से नेह कभी कम न हुआ
उसे जीवन भर का संचित धन समझा
है वही अनमोल मेरे लिए
प्रभु भक्ति से बढ़ा कम न हुआ |...अभिभूत
सुन्दर सार्थक भावपूर्ण रचना ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर सार्थक....
जवाब देंहटाएंकुछ यादों को भुलाना ही श्रेयकर होता है
धन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंकोमल भावनाओं युक्त सुंदर रचना !!!
जवाब देंहटाएंबधाई!!!
धन्यवाद शरद जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबेहद खूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए सुजाता जी |
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