21 सितंबर, 2020

घर



 

 

घर तो घर ही होता है

देश में  हो या परदेश में

जहां चार जने अपने होते है

वहीं स्वर्ग हो जाता है |

एक दूसरे का सुख दुःख

अलग नहीं होता

आपस में बांट लिया जाता

ऐसा प्यार कहीं नहीं मिल पाता|

चार दीवारों से मकान तो बन जाता  

पर घर नहीं बन पाता

केवल एक छत के नीचे रहने से

पर मनों के ना मिलने से वह सराय  हो जाता |

सच्चा घर तो वही है जहां

अपनापन लिए हुए सब उलझनों का

समस्याओं का निदान हो  जाता है

दो जून की रोटी का जुगाड़ हो जाता है |

सब मिल बाँट कर  भोजन कर लेते है

समस्याओं के हल खोज लेते हैं

मेरा तेरा नहीं करते वही अपने कहलाते

प्यार के दो बोल के लिए नहीं तरसाते |

घर को स्वर्ग कहा जाता है

यूँ ही नहीं उसमें है योगदान

घर के रहवासियों का भी 

वही मकान  को घर में बदल देते हैं |

आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-9 -2020 ) को "काँधे पर हल धरे किसान"(चर्चा अंक-3832) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  2. बिलकुल सच है ! प्यार, अपनेपन और ममत्व से एक झोंपडा भी घर बन जाता है और इनके अभाव में महल भी इमारत भर बने रहते हैं घर नहीं कहलाते ! सार्थक रचना !

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  3. सुप्रभात
    धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

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