22 दिसंबर, 2020

प्रतीक्षा



रातें काटी तारे गिन गिन
थके  हारे नैन  ताकते रहे  बंद दरवाजे को
हलकी सी आहाट भी
ले जाती सारा ध्यान उसका  उस ओर
विरहन जोह रही राह तुम्हारी
कब तक उससे प्रतीक्षा करवाओगे
क्या ठान लिया है तुमने
उसे जी भर के तरसाओगे |
क्या किया ऐसा  उसने
 जो तुम  समय पर ना आए
या जानना चाहते हो
कितना लगाव है उसको तुमसे
अब और कितनी प्रतीक्षा करवाओगे |
प्रतीक्षा का भी है  अपना अंदाज नया
पर भारी पडा है  यह इन्तजार  उसे
तुम्हारे अलावा सब जानते हैं
जब देखोगे उसका हाल बुरा
बहुत पछताओगे |
अगर जाना ही था तो बता कर जाते
वह इस हद तक परेशान तो न होती
इंतज़ार तो होता अवश्य पर
बुरे ख्यालों की भरमार न होती
रोते रोते उसका यह हाल तो न होता
दिल में  बुरे विचारों की भरमार न होती |
प्रतीक्षा की आदत है उसको  
 क्या होता यदि बता कर जाते
इन्तजार की घड़ी कैसे कट जाती
वह जान ही नहीं पाती
बहुत उत्साह से दरवाजा खोल
मुस्कुरा कर  तुम्हारा स्वागत करती |
आशा


05 फ़रवरी, 2012

प्रतीक्षा

मैं आज अपनी ५००वी रचना प्रेषित कर रही हूँ :-                                                                                                   
ह्रदय  पटल पर
अंकित शब्द 
जो  कभी सुने थे 
यादों  में ऐसे बसे 
कि  भूल नहीं पाता
कहाँ कहाँ नहीं भटका 
खोज  में उसकी 
मिलते  ही 
क्यूँ न बाँध लूं 
उसे  स्नेह पाश में 
जब  भी किसी
गली तक पहुंचा
मार्ग अवरुद्ध मिला
जब उसे नहीं पाया 
हारा  थका लौट आया 
आशा  का दामन न छोड़ा
लक्ष्य  पर अवधान रहा
आगे क्या करना है
बस यही मन में रहा 
हो  यदि दृढ़ इच्छा शक्ति
होता कुछ भी नहींअसंभव
फिर भी यदि
वह नहीं मिल पाई
आस का दीपक जला 
चिर  संध्या तक 
प्रतीक्षा करूँगा
आशा














31 मईयुगांतर

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-12-2020) को   "शीतल-शीतल भोर है, शीतल ही है शाम"  (चर्चा अंक-3924)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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