08 फ़रवरी, 2021

पक्षियों से ली सीख


                            कबूतर  तुम्हारा  नियमित  आना

समय से दाना चुगना

वख्त की अहमियत समझना

 यही  है मूल मन्त्र जीवन पथ पर 

अग्रसर होने का |

रोज निगाहें टिकी  रहती हैं

 छत पर समूह में एकत्र हो तुम 

  कब आओगे दाना चुगने

 ध्यान वहीं रहता है

कहीं भूखे तो न रह जाओगे |

जब भूख तुम्हारी शांत होती है

मुझे आत्म संतुष्टि मिलती है

जब तृप्त हो व्योम में  उड़ जाते हो

 मैं सोचती हूँ कितनी शान्ति

होती  होगी तुम्हारे मन में |

तुमसे मैंने भी शिक्षा ली है

यह जीवन  है सद्कार्यों  के लिए

परोपकार  का महत्व समझा है

 अपने लिए  जीना ही पर्याप्त नहीं |

आशा 

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज सोमवार 08 फरवरी को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सुप्रभात
      धन्यवाद शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9-2-21) को "मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव"(चर्चा अंक- 3972) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      आभार कामिनी जी मेरी रचना की सूचना के लिए |

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  4. मैं सोचती हूँ कितनी शान्ति

    होती होगी तुम्हारे मन में |----अच्छी पंक्तियां...। पूरी रचना गहरी है।

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  5. यही सबसे विशेष बात है कि अपने आस पास घटित होने वाली हर गतिविधि से हम कुछ न कुछ सीख सकते हैं ! पंछियों का प्रतिदिन निश्चित समय पर दाना चुगने आना भी हमें अनुशासन की शिक्षा दे जाता है ! बहुत सुन्दर रचना !

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, आदरणीया आकांशा जी किसी ने कहा भी है-परिंदो में फिकरा परस्ती क्यों नहीं होती कभी मंदिर पे जा बैठे कभी मस्जिद पे जा बैठे भारतीय साहित्य एवं संस्कृति

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    1. संजय जी मेरा नाम आशा है आकांशा नहीं |आकांक्षा तो ब्लॉग का नाम है |

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  7. धन्यवाद संजय जी टिप्पणी के लिए |

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