02 मार्च, 2021

मेरे मन के मीत

                                     


क्यूँ विसराया मुझे

मेरे मन के मीत

मेरी क्या रही खता

जो तुम भूले मुझे |

मैंने रात भर जाग कर 

राह देखी तुम्हारी 

फिर क्यूँ मुझे विसराया

 दिया इन्तजार बदले में |

क्या तुम्हारे दिल में

मेरे लिए कोई जगह नहीं है

या मुझमें कोई

आकर्षण नहीं है |

क्यूँ  किसी और को

अपनाया तुमने

मन बैरागी  होने लगा है  

मैंने तो अपना

 तन मन धन सब वैभव

  सोंप दिया है   तुम्हें |

पर तुमने  दिल से

कभी न अपनाया मुझे

मेरे ही साथ

यह दुभात क्यूँ ?

 आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

                                                    

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  

21 टिप्‍पणियां:

  1. सच नियति एक जैसे नहीं होती सबकी

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  2. राधा के मन की व्यथा सुनाती बहुत ही सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह सरस पाती निष्ठुर कान्हा के नाम। पर ये प्रश्न अनुत्तरित रहा सदियों से---- कि क्यों बिसराया मुझे?

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. आदरणीया, कृपया इस लिंक पर पधारें...

    आधुनिक हिन्दी कवयित्रियों के प्रेमगीत

    इस किताब में आपकी माताजी के गीत भी संकलित हैं।
    शुभकामनाओं सहित,
    सादर
    डॉ. वर्षा सिंह

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    उत्तर
    1. आदरणीया वर्षा जी
      इस किताब में मेरी माताजी की रचनाएं सम्मिलित नहीं हैं|यह ब्लॉग आकांक्षा मेरा ही है |पर दूसरे ब्लॉग अमृतकलश मम्मी जी का है |उसमें प्राराम्भ की ११रचनाएं उनकी लिखी हुई है |बाक़ी पहले आकांक्षा में प्रोज पोस्ट की थीं फिर उन्हें इस ब्लॉग में शिफ्ट करदीं हैं जिससे नया और ब्लॉग बनाने के स्थान पर
      ऐसे ही काम चल जाए |मेरी रचनाओं पर मे३रा नाम लिखा है|
      अभीतक मैं १२ पुस्तकें अपनी प्रकाशित कर चुकी हूँ |
      आशा

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  6. हृदय स्पर्शी भावप्रवण रचना

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  7. सर नमस्कार मेरा स्वाथ्य ठीक नहीं रहता है इस कारण अधिक देर कंप्यूटर पर बैठ नहीं पाती |पर सचमें मैं अधिकाँश रचनाएं पढ़ ही लेती हूँ |आपकी टिप्पणियों से लिखने की प्रेरणा मिलती है |मेरी रचना की सूचना के लिए धन्यवाद |

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  8. विरह की वेदना को दर्शाता बहुत सुन्दर सृजन...

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