30 मार्च, 2021

एक छत के नीचे

 

  


                                                                       वह और मैं   

क्यूँ  रह पाए साथ

 समझे नहीं   

 एक छत के नीचे  

हमारे बीच

 नहीं खून का रिश्ता

   जाना जरूर 

 फिर भी  लगाव है

दौनों के बीच

यह अवश्य जाना

 खोजा गया मैं    

तराशी गई  वह     

अटूट  बंध  

 है क्या  बंधन कच्चा  

खोज न पाए  

गहरा लगाव रहा

यही  समझा 

 उसमें  व मुझ  में     

जो मन भाया

कुछ भी नहीं होती  

अवधारणा  

रही मन में मेरे   

हुई  है  दृढ

तभी  किया एकत्र

एक घर में

 है  सभी का विचार  

 एक ही जैसा  

तभी रह रहे हैं

चहक रहे

एक छत के  नीचे  

 न दुराव है 

न  मन मुटाव ही 

आपस में है    

 समझ से बाहर

  है  मेरा  तेरा  

सब का रहा  सांझा    

 रहता ही  है 

8 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति ! बहुत बढ़िया !

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  3. आभार सर मेरी रचना की सूचना के लिए |

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  4. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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