यह दिवस
मनाते कब से हैं
इसकी यादें
बसती हैं मन में
एक पेड़ सी
घने वृक्ष के जैसी
गहरी जड़ें
फैल रही धरा में
फैली शाखाएं
देती हरियाली है
नव पल्लव
खिल जाते डालों पे
सजते सोच
शब्द सहेजे जाते
उड़ते पक्षी
विभिन्न कथन हैं
छिपे उनमें
शब्दों से बने गीत
भूल न
पाते
उनके हैं सन्देश
दिल में रहे
तभी यह दिवस
मनाया जाता
आशा
Thanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबधाई हो।
धन्यवाद टिप्पणी के लिए सर |
हटाएंकविता दिवस पर सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंFor the comment