20 मई, 2022

यादों का पिटारा




 

बरसों बरस होती

संचय की आदत सब में

यादों के रूप में

यही मेरे साथ हुआ है |

पुरानी यादों को

बहुत सहेज कर रखा है

अपनी यादों के पिटारे में

यह पिटारा जब भी खोलती हूँ

बहती  जाती हूँ

विचारों के समुन्दर में|

इससे जो सुख

दुःख  मुझे मिलता 

है इतना अनमोल कि

उसको किसी से बांटने का

मन नहीं  होता  |

बचपन की मीठी यादे मुझे ले जाती उस बीते कल में

वे लम्हे कब बीत गए

पिटारा भरने लगा |

जब योवन में कदम रखा

  समस्याओं से घिरी रही

 वे दिन भी यादों में ताजे है |

धीरे से समय कब बीता

जीवन में आया स्थाईत्व

सब याद रहा एक तस्वीर सा

अब बानप्रस्थ की बारी आई |

  जिम्मेंदारी में उलझी

एक एक लम्हां कैसे कटा

सब है याद मुझे  |

जीवन की संध्या में यही माया मोह

 मेरा पीछ नहीं छोड़ता कैसे दुनियादारी से बचूं |

कीं जैसे ही ऊंची उड़ान की कल्पना  

 मन के पंख कटे  

ठोस धरातल पर आई |  

आस्था की ओर कुछ  झुकाव हुआ है

यही है सार मनोभावों का जो मैंने छिपाए रखा है

यादों के पिटारे में  |

आशा  

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२१-०५-२०२२ ) को
    'मेंहदी की बाड़'(चर्चा अंक-४४३७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह वाह!क्या ख़ूब यादों का पिटारा है,बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह ! सम्पूर्ण जीवन का लेखा जोखा समाहित कर दिया अपनी छोटी सी रचना में ! हर व्यक्ति की यही कहानी ! सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं

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