06 फ़रवरी, 2013
05 फ़रवरी, 2013
सड़क
बड़ा महत्त्व रखती है
सब का भार वहन करती है
बड़ा संघर्ष करती है
कोई आये कोई जाए
वह कहीं नहीं जाती
गिला शिकवा नहीं करती
हर आने जाने वाले के
मनोभाव तोलती है |
है बच्चों की वह प्रिय सहेली
बनती रेस का ट्रेक
कभी क्रिकेट का मैदान होती
विकेट रखती समेत
सब मिलते सुबह शाम यहीं
सबको प्यारी लगती
है मानक देश की समृद्धि की
और जीवन रेखा प्रदेश की
वह कितना भार वहन करती है
यह किसी ने नहीं देखा
इस पर हुए अत्याचार कई
सब ने अनदेखा किया
इस पर हुए अत्याचार कई
सब ने अनदेखा किया
इसका महत्त्व न जाना
यही बात मन को
बहुत दुखी करती है
यह है अपनी सड़क
बहुत महत्त्व रखती है |
आशा
03 फ़रवरी, 2013
बंद करके जुगनुओं को
अपने पास रखा है
एक छोटे से कमरे में
उन्हें छिपा रखा है
|जब भी वे चमकें
रौशनी करें
केवल मेरे ही लिए हो
किसी और का सांझा न हो
सांझा चूल्हा मुझे नहीं भाता
मन अशांत कर जाता
मन अशांत कर जाता
तभी तो एकाकीपन मैंने
सम्हाल कर रखा
बड़े यत्न
से
सदुपयोग उसका किया
एकांत पलों को भी जीना
सीख लिया है
अब परिवर्तन नहीं चाहती
एकांत का महत्त्व जान गयी
अपूर्व शान्ति पाते ही
कुछ सोच उभरते हैं
जिनके अपने मतलब होते हैं
यह अदभुद प्रयास
है नमूना एक
सार्थक जीवन जीने का |
01 फ़रवरी, 2013
31 जनवरी, 2013
साजिश किसी की
खतरा सर पर मंडराया
दिन में स्वप्न नजर आया
किरच किरच हो बिखरा
वजूद उसका शीशे सा
न जाने कब दरका
अक्स उसका आईने
सा
अहसास न हुआ
टुकड़े कब हुए
यहाँ वहाँ बिखरे
दर्द नहीं जाना
स्वप्न में खोया रहा
स्वप्न में खोया रहा
जब हुई चुभन गहरे तक
दूभर हुआ चलना
रक्त रंजित फर्श पर
तब भी नादाँ
पहचान नहीं पाया
पहचान नहीं पाया
वह थी साजिश किसी की
दिल को दुखाने की
उसको फंसाने की |
28 जनवरी, 2013
शब्द जाल
अंतःकरण से शब्द निकले
चुने बुने और फैलाए
दिए नए आयाम उन्हें
और जाल बुनता गया
थम न सका प्रवाह
एक जखीरा बनता गया
सम्यक दृष्टि से देखा
नया रूप नजर आया
जिसने जैसा सोचा
वैसा ही अर्थ निकल पाया
पहले भाव
शून्य से थे
धीरे धीरे प्रखर हुए
सार्थकता का बोध हुआ
उत्साह द्विगुणित हुआ
अदभुद सा अहसास लिए
नया करने का मन बना
कई भ्रांतियां मन में थीं
समाधान उनका हुआ
है यह विधा ही ऐसी
दिन रात व्यस्तता रहती
समय ठहर सा जाता
मन उसी में रमा रहता
है प्रभाव उन शब्दों का
जो जुडने को मचलते
बाक्यों में बदलते
बाक्यों में बदलते
उनसे अनजाने में
कई रचनाएं बनतीं
कविता से कविता बनती
आवृत्ति विचारों की होती
स्वतः ही
मन खिचता
फिर से फँस जाता
शब्दों के जाल में |
आशा
26 जनवरी, 2013
ऊष्मा प्यार की
रात कितनी भी स्याह क्यूँ न हो
चाँद की उजास कम नहीं होती
प्यार कितना भी कम से कमतर हो
उसकी मिठास कम नहीं होती
कितना प्यार किया तुझको
यह तक नहीं जता पाया
तेरे वादों पर ऐतवार किया
जब भी चाह ने करवट ली
चाँद बहुत दूर नजर आया
यही बात मुझे सालती है
आखिर मैंने क्यूँ प्यार किया
वादों पर क्यूँ ऐतवार किया
कहीं कमीं प्यार में तो नहीं
जो तू इतना बदल गयी
तनिक भी होती ऊष्मा
यदि हमारे प्यार में
तू भी उसे महसूस करती
यह दिन नहीं देखना पड़ता
प्यार से भरोसा न उठता |
आशा
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