कितना सताया है
मुझे
इंतज़ार करके हारी
मेरी परीक्षा कब तक लोगे
मेरे श्याम बिहारी |
घंटों बैठी बाट निहारती
तुम न आए गिरधारी
मैं सारे जग से ठगी गई
यह हुआ कैसे मैं जान न पाई
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अब जा कर सतर्क हुई हूँ
जब से ठोकर खाई है
दुनिया की रीत निराली है |
यहाँ स्थान रिक्त नहीं है
मुझ जैसे लोगों के लिए
ना तो चालबाजी आई
ना ही लोका चार यहाँ का |
मैंने किनारा कर लिया है
इस अजूबी दुनिया से
अब आपकी शरण में आई हूँ
अब तो अपनालो मुझे |
आशा