05 दिसंबर, 2014
03 दिसंबर, 2014
बालक मन चंचल स्थिर न रहता
सात रंग में सजा इंद्रधनुष
वर्षा ऋतू में
दिशा खोजता विपरीत सूर्य के
इंद्र धनुष
प्रमुख पांच वर्चस्व रंगों का ही
इंद्र धनुष में
बहता जल कलकल निनाद
वर्षा ऋतू में
दिशा खोजता विपरीत सूर्य के
इंद्र धनुष
प्रमुख पांच वर्चस्व रंगों का ही
इंद्र धनुष में
बहता जल कलकल निनाद
चंचल मन
मन मयूर नाचता थिरकता
खुशियाँ लाता
पा अपनों को मन ममतामय
प्यार जताता
पंखी सा मन पंख फैला उड़ता
चाँद चाहता
किया प्रयास असफलता हाथ
मन उदास
बंधक मन तन के पिंजरे में
कैसी आजादी
कही कहानी याद आई पुरानी
लगी सुहानी
चाचा नेहरू बाल मन में बसे
यादों में रहे
मन मोहती शीशे मैं से झांकती
तेरी मुसकान
बालक मन जैसे निर्मल जल
प्यारा लगता |
01 दिसंबर, 2014
बंधन अटूट
दो जिस्म एक जान
हुआ करते थे
हल्का सा दर्द भी
सह न पाते थे
सह न पाते थे
अलगाव से
बेहाल होते
बेहाल होते
यही तो कुछ था भिन्न
सबसे अलग
सबसे जुदा
सबसे जुदा
गम जुदाई
सह न पाते
सह न पाते
मरणासन्न से हो जाते
सदा साथ रहते देखा
कुदृष्टि पड़ गई किसी की
जीवन में विष घुला
सारी शान्ति हर ले गया
जीवन निरर्थक लगा
प्रेम की चिड़िया
कूच कर गई
एक की इहलीला
समाप्त हो गई
हादसा सह नहीं पाया
खुद की जान से गया
और घरौंदा खाली हुआ
कूच कर गई
एक की इहलीला
समाप्त हो गई
हादसा सह नहीं पाया
खुद की जान से गया
और घरौंदा खाली हुआ
क्या सच्चा प्यार
यही कहलाता
यही कहलाता
विचारों पर हावी हुआ |
आशा
30 नवंबर, 2014
निर्विकार
है निरीह
निर्विकार आत्मा
बंधक है
तन के पिंजरे में
पञ्च तत्व से
निर्मित है जो
आसान नहीं उसे
छोड़ना
है बैचैन बहुत
तोड़ना चाहती समस्त बंधन
तोड़ना चाहती समस्त बंधन
है बेकरार उन्मुक्त होने को
नहीं चाहती कोइ
बाधा
चाहती मुक्ति
तन के पिंजरे से |
एक ही है लक्ष्य
बंधन रहित उन्मुक्त जीवन
वादा चाहती परब्रह्म से
किये अनगिनत
प्रयास
कोई तो सफल हो
परमात्मा की
दृष्टि पड़े
और वह मुक्त हो |
आशा
28 नवंबर, 2014
उन्नयन
उलझे उलझे से बाल
लिए विचारों का सैलाव
पहना आधुनिक लिवास
कैसे उसे कोई पहचाने
समय बदला वह बदली
झूठा मुखौटा ओढ़ा
समय के साथ चली
फिर भी कसक रही मन में
किसने बाध्य किया
इस परिवर्तन के लिए
पहले थी वह सुप्त
देख समाज की ओर
भ्रमित होती रही
खुद
में ही सिमटी रही
अब उसने खुद को पहचाना
नारी के महत्व को जाना
आज है वह समर्थ नारी के महत्व को जाना
सजग सक्षम सचेत
नहीं कमतर किसी से
कुछ करने की अभिलाषा
मन में सजोए है
यह
है एक कहानी
नारी में आए परिवर्तन की
उसके उन्नयन की |
आशा
आशा
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