पीठ पर वार के लिए नहीं
जो भी करता वार पीठ पर
वह है दरिंदा इंसान नहीं |
प्यार है बहुत दूर उससे
कभी उसे जान पाया नहीं
ममता क्या होती है ?
उसे खोज पाया नहीं |
बचपन से ही परहेज रखा
ये शब्द हैं निरर्थक जीवन में
इनका कोई स्थान नहीं
तभी कोई ऐसे भाव् मन में आते
नहीं
ऐसे शब्दों के जाल में उलझाते नहीं|
पर उसकी निगाहें
है खंजर की धार सी पैनी
तुरंत भांप लेती हैं
क्या है मन में किसी के |
मंशा पहचान लेती हैं
पलटवार के लिए सदा रहती तत्पर
उसके लिए नया नहीं है वार पर वार करना
खंजर की पैनी धार है
अपने को कैसे बचाना
हमलावर कातिल से |
आशा
आशा