जब विष बुझे शब्दों के बाण
मुहँ के तरकश से निकलते
क्षत विक्षत मन करते
उसे विगलित करते |
उसे विगलित करते |
दिल का सारा चैन हर लेते
व्यथा मन की जानने की
किसी को यूं तो जिज्ञासा न होती
जो भी जानना चाहते ठहरते |
परनिंदा का आनंद उठाते
परनिंदा का आनंद उठाते
अपनी उत्सुकता को
और भी हवा देते |
और भी हवा देते |
मन की व्यथा बढ़ती जाती
खुद मुखर होने को
बेचैन हो जाती |
बेचैन हो जाती |
जब तक मन का हाल
बयान नहीं करती
बयान नहीं करती
अंतस में करवटें
बदलने लगती |
बदलने लगती |
व्यथा मन की
इतनी बढ़ जाती
इतनी बढ़ जाती
चहरे के भावों पर
स्पष्ट दिखाई देती|
स्पष्ट दिखाई देती|
सोचना पड़ता
कोई तो निदान होगा
कोई तो निदान होगा
जग से इसे छिपाने का
कोई हल नजर नहीं आता
इससे निजात पाने का |
कोई हल नजर नहीं आता
इससे निजात पाने का |
जब व्यथा विकराल रूप लेती
हद से गुजर जाती
हद से गुजर जाती
बहुत समय लगता
मन को सामान्य होने में |
हर शब्द तीर सा चुभता
मन को सामान्य होने में |
हर शब्द तीर सा चुभता
अंतस में बहुत कष्ट होता
दिल के टुकड़े हजार करता
जाने अनजाने में |
जाने अनजाने में |
आशा