09 नवंबर, 2020

यात्रा संस्मरण (२)


  यात्रा संस्मरण (२)

जैसे ही होटल पहुंचे पास के कमरे से जानी पहचानी आवाज सुनाई दी |बाहर निकल कर देखा तो पता चला किहमारे एक करीबी रिश्तेदार उस कक्ष में आकर ठहरे थे |बहुत प्रसन्नता हुई मिलकर |रात को बहुत देर तक बातें होती रहीं |फिर ख्याल आया की सुबह उठ कर ऋषीकेश के लिए रवाना होना है |झटपट से अपने कमरे की ओर प्रस्थान किया |

सुबह जल्दी से तैयार होकर  बाहर निकले |बहुत सुन्दर नजारा देखा

स्टैंड पर  गाड़ी आने का समाचार मिला |उस ओर चल दिए |सामान रखा जा चुका था |हमारे पहुंचाते ही मिनी बस चल दी |अधिक समय नहीं लगा ऋषिकेश पहुँचाने में |

   सब से पहले एक मंदिर के दर्शन किये फिर लक्ष्मण झूले की और प्रस्थान किया | इतना बड़ा पुल पहले कभी नहीं देखा था आँखें हुई हैरान |पुल के नीचे से तेजी से बहती गंगा |दृश्य बड़ा मनोरम था |दूसरी ओर बड़ी बड़ी धर्मशालाएं थी |घाट पर लोग स्नान कर रहे  थे|पूजा अर्चन कर रहे थे |हमने वहां स्नान नहीं किया | थोड़ा आगे बढे जहां बहाव कम लगा |सोचा आराम से यहाँ ही नहालें पर

बहाव इतना अधिक तेज था कि पैर ही नहीं टिक पा रहे थे |बड़ी  बेटी के पाँव उखाड़े और बहने लगी |आसपास के लोगों ने उसे पकड़ा और हिदायत दी कि बिना हाथ थामे आगे कदम नहीं उठाना |खैर एक हादसा होते होते बचा |जल्दी से और मंदिरों के दर्शन किये और

वृद्ध आश्रम भी देखा | फिर चल दिए अपने अगले गंतव्य की ओर|--

(क्रमशः)   

 

 

 

 

 

 

 

08 नवंबर, 2020


यात्रा विवरण

गर्मियों की छुट्टी हो गई थी |रोज प्लान होता कहाँ जाएं |यही विचार हो रहा था की दरवाजे पर दस्तक हुई |शायद कोई आया था |दरवाजा खोल कर देखा तो महमान आए थे |हमारा प्लान धरा का धरा रह गया |पर यह जान कर बहुत प्रसन्नता हुई कि वे लोग भी घूमने के इरादे से ही आए थे |फिर से स्थान चयन की प्रक्रिया प्रारम्भ की गई |आसपास तो जाते ही रहते हैं क्यूँ न लम्बी यात्रा की जाए |बात तो सही थी |सब की सहमती बनी |हमने चार धाम यात्रा का प्लान बनाया पर उन लोगों ने कहा भाभी जी यह तो बहुत थकाने वाला होगा |क्यों न दो बार में इस यात्रा को संपन्न किया जाए |बात सही थी अतः पहला ट्रिप बद्री नाथ केदार नाथ जाने का तय हुआ |

        सब तैयारी में जुट गए |सामान कम हो और आसानी से खुद उठा पाएं इस लिए समय अधिक लगा  तैयारी में |जिस दिन टिकिट कन्फर्म हुए बहत प्रसन्नता हुई |यहाँ से दिल्ली का टिकिट लिया और

सभी प्लान ठीक से चल रहा था की अचानक राजीव गांधी के निधन का समाचार आया और उज्जैन बंद का |अब क्या करते रेलवे स्टेशन  जाने के लिए कोई वाहन नहीं था |एक सब्जी वाला घर  जाने की तैयारी की तैयारी कर रहा था उससे से विनती की हमें लेजाने की |उसे आवश्यका थी इस लिए ले गया  |

जैसे तैसे गाड़ी से रवाना हुए और दिल्ली पहंचे  एक रात होटल में रुके |वहां से एक वैन की बुकिंग करवाली थी |वहां से सुबह आठ बजे वहां से हरिद्वार के लिए रवाना हुए | जहां का पता दिया था वह स्टेशन से दूर नहीं था |सामान कमरे में रखकर हरिद्वर घूमने निकले |सब से हर की पैड़ी पर स्नान ध्यान किया आयर दर्शन किये |फिर नौका विहार किया |पर धुप तेज हो गई थी इसलिए बापिस होटल पहुंचे और थकान मिटाने के  बाद शाम को रोपवे से माता जी के दर्शन करने गए |रोप वे से जाने का पहला अनुभव बहुत बढ़िया रहा|

   जब लौटे तब रास्ते में मंदिर ही मंदिर थे |सब के दर्शन के चार में मैं और मेरी महमान इन लोगों से बहुत पीछे रह गए

सभी की चिंताओं का ठिकाना न रहा और हमें खोजने बापिस आए  |जब मिले तब ही चैन की सांस ले पाए|पर मुझे बहुत सुनना पड़ा  गलती मेरी ही थी इसलिए सुनना पड़ा| शाम को फिर से होटल पहुंचे |आराम किया | दूसरे दिन ऋषीकेश के लिए निकलना था |-----(-क्रमशः)

आशा

  

 

 

 

 

06 नवंबर, 2020

ओ मिलकर खेलें खेल


                                                               आओ मिल कर खेलें खेल

 जिन्दगी से क्या सीखा ? 

 आपस में बाँटें विचार सच्चे मन से 

केवल सतही नहीं |

 उत्तर जो मिले दिल से

 वही सही होंगे 

 इस लिए एक जज नियुक्त करें 

 जो सही राय दे पाए 

 अपना फैसला सुनाने में हो निष्पक्ष |

 जो सत्य का साथ दे

 हर बात जो कही जाए 

 कहानी का  अंश नजर ना आए

 उसे सत्य की कसौटी पर परख पाएं |

 खेल में कोई हार जीत नहीं होगी

 पर विचारों में मिलावट नहीं होगी

 तभी आनंद आएगा खेल का 

 जब जज फैसला सुनाएगा | 

आशा

05 नवंबर, 2020

ऐसा किस लिए -

चाँद तुम कहाँ सो गए थे

यह तक भूले कितने लोगों  को था इन्तजार तुम्हारा

भूखे प्यासे तरसी निगाहों से

तुम्हारे दरश को तरस रहे थे |

जब तुमने झांका व्योम से

तभी चैन की सांस आई

पर छोटी सी बदली ने तुम्हें

फिर  अपनी चूनर से ढांक लिया |

जिन लोगों ने  दर्शन नहीं किये फिर से तुम्हें बुलाने का यत्न किया |काफी समय लिया तुमने बापिस आने में  ऐसा किसलिए |

आशा

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

04 नवंबर, 2020

आस,प्यास,भूख .नींद करवाचौथ की कहानी ४-

४-आस,प्यास,भूख .नींद
एक राजा था| उसका एक बेटा था |इकलौता बेटा
लाड़प्यार में बिगड़ने लगा |राजा ने बहुत परेशान हो कर अपने मंत्री से सलाह
मांगी |उन्होंने कहा कि राजकुमार को घर से निकाल दीजिये |जब खुद के पैरों पर खडा होगा अपने आप
सुधर जाएगा |राजाने बेटे को निकाल दिया |
राजकुमार अकेला चलने लगा |राह में जंगल था |उसके पैर में एक काँटा चुभ
गया |जैसे ही वह काँटा निकालने के लिए झुका उसने चार महिलाओं को आपस में झगड़ते देखा |उससे रहा नहीं गया |आपस में झगड़ने का कारण
जानना चाहा |पहली महिला ने अपना नाम 'प्यास' बताया |राज कुमार ने कुछ सोचा और कहा प्यास का क्या जब प्यास लगे कहीं का भी पानी पीया जा सकता है नही मैंने आपको सलाम नहीं किया है |
फिर वह दूसरी की और मुखातिब हुआ उसने अपना नाम 'भूख 'बताया |वह सोच रहा था कहने लगा " भूख जब लगती है कुछ भी खा कर शान्ति मिल जाती है "|
अब तीसरी से नाम जानना चाहा |उसने अपना नाम 'नींद' बताया |
राज कुमार ने सोच कर कहा नींद तो चाहे जहां आ जाती है |उसको किसी आलीशान बिस्तर की आवश्यकता नहीं होती |
चौथी ने अपना नाम 'आस'बताया |राजकुमार ने झुक कर उसे सलाम किया और
कहा "आस् माता तुम्हें मेरा प्रणाम |आस पर तो सारी दुनिया निर्भर है |
वास्तव् में वे देवियाँ थीं और राज कुमार की परिक्षा लेने आई थीं |
चारों ने राजकुमार को खूब आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गईं |
आगे गया तो कुछ लोग आपस में किसी स्वयंबर की बात कर रहे थे |उसने
सोचा क्यों न वह भी वहां जाए और उस में भाग ले |वह भी उन लोगों के साथ चल दिया |आयोजन बहुत भव्य था |पर राजा ने एक शर्त रखी थी |पंडाल में बीच में एक घूमती मछली टागी गई थी |जो भी उस की आँख पर
निशाना लगाएगा उससे ही राज कुमारी की शादी होगी |
पहले ही बाण से सही निशाना लगाया और राज कुमारी से ब्याह ख़ुशी से संपन्न हुआ |राजा इस लिए खुश था कि बेटी से जुदाई नहीं सहनी पडीं |
जब पहली करवा चौथ आई राज कुमारी ने बायना निकाला पर धोवन ने उसे अस्वीकार कर दिया यह कहते हुए की जिसके कोई परिवार न हो उसका दिया वह नहीं लेती |राज कुमारी बहुत रोई और जिद्द कर बैठी किजब अपनी ससुराल नहीं जाएगी तब तक अन्न जल भी ग्रहण नहीं करेगी |राजा के पास समाचार पहुंचा
उन्होंने बेटी की बिदाई बहुत धूमधाम से की |राज कुमार अपने राज्य में पहुंचा
तब तक राजा वृद्ध हो चुका था |उसने सोचा कि किसी राजा ने चढ़ाई की है |पर जब बेटे ने रथ से उतर कर पैर छुए उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा |
राजकुमार और बहू को देख मा का आँचल दूध की धार से भर गया |
राजा राजपाठ बेटे को सोंप तीर्थाटन को चला गया |बहुत समय तक राजकुमार अपनी पत्नी सहित कुशलता से राज करता रहा |प्रजा बहुत खुशहाल रही |
आशा


 

 करवा चौथ की कुछ  कहानियां -

१-एक कहानी तुलसी की

एक गाँव में तुलसी नाम की एक महिला रहती थी | वह रोज अपने आँगन में लगी तुलसी पर जल चढ़ाती थी |
जब वह पूजन करती थी तब वह भगवान से प्रार्थना करती थी कि यदि वह मरे तब उसे भगवान विष्णु का
कन्धा मिले |

एक रात वह अचानक चल बसी | आसपास के सभी लोग एकत्र हो कर उसे चक्रतीर्थ ले जाने की तैयारी
करने लगे | जब उसकी अर्थी तैयार की जा रही थी लागों ने पाया कि उसे उठाना असम्भव है | वह पत्थर
की  तरह भारी हो गई थी |
उधर विष्णु लोक में जोर जोर से घंटे बजने लगे | उस समय विष्णु जी शेष शैया पर विश्राम कर रहे थे |
लक्ष्मीजी उनके पैर दबा रहीं थीं | घंटों की आवाज से विष्णु जी विचलित हो उठे | लक्ष्मी जी ने परेशानी का
कारण जानना चाहा | भगवान ने कहा मुझे मेरा कोई भक्त बुला रहा है |मुझे अभी वहाँ जाना होगा |
हरी ने एक बालक का रूप धरा व वहाँ जा पहुँचे | वहाँ जा कर उसे अपना कन्धा दिया |जैसे ही भगबान आशा का स्पर्श हुआ अर्थी एकदम हल्की हो गयी और महिला की मुक्ति हो गई |

 

 

२-सात भाइयों की एक बहिन


  सात भाइयों की एक ही बहिन थी |सातों उससे बहुत प्यार करते थे |
वय  प्राप्ति के बाद उसका बिवाह उसी शहर में एक संपन्न परिवार में हुआ |ससुराल में कोई कमीं  न थी |पर भाई बहुत चिंता करते थे उसकी| 
    जब पहली करवा चतुर्थी आई बहन ने निर्जला व्रत रखा |
उसे व्रत चाँद देख कर ही खोलना था |भाई बहुत परेशान थे कि बिना जल के बहिन उपास कैसे रखेगी |उन्हों ने आपस में विचार विमर्श किया |कोई तरकीब निकाली जाए कि बहिन का व्रत जल्दी समाप्त हो जाए |
   आँगन में एक अखैवर का वृक्ष लगा था |भाइयों में से एक
शाम होते ही पेड़ की  सबसे ऊंची  डाल पर एक छलनी ले कर चढ़ गया |उसमें एक जलता हुआ दिया रख लिया |
  सबसे छोटा भाई  बहिन के पास जा कर बोला “चाँद निकल आया है”चलो बहिन व्रत खोलो | बहिन बहुत सीधी थी |उसने पानी पी कर
व्रत तोड़ा |इतने में उसकी ससुराल से समाचार आया कि न जाने उसके पति को क्या हो गया |वह खबर सुनते ही अपनी ससुराल चल दी |वहाँ  सब  हिचकियाँ ले कर रो रहे थे |आसपास के लोग ले जाने की तैयारी करने लगे |उससे रहा नहीं गया और पति की अर्थी को ठेले पर रख घर से निकली |
सबसे पहले घूरे के पास गई उससे कहा “घूरे मामा मैं तुम्हारे पास
आऊँ”|घूरे ने कहा “बेटी तेरे दिन भारी हैं मेरे पास न आ” उसे बुरा लगा और कहा “जाओ१२ वर्ष बाद भी तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे”| थोड़ा और आगे चली|राह में एक गाय मिली उससे कहा “क्या मैं तेरे पास आऊँ”|गाय ने भी उसे अपने पास ठहराने से मना कर दिया और कहा “बेटी तेरे दिन भारी है मेरे पास कैसे रहेगी”|उसे बहुत दुःख हुआ और श्राप दिया जिस मुंह से गाय ने मना किया था उसी मुंह से गाय  विष्ठा पान करेगी |
हारी थकी वह एक गूलर के पास पहुंची “गूलर भैया मैं  तुम्हारे पास
रुक जाऊं”|पर गूलर से भी निराशा ही हाथ लगी |उसने गूलर को श्राप दिया की तुम्हारा फल कोई नहीं खाएगा उसमें कीड़े पड़ जाएंगे |
   आगे जा कर वह एक बरगद के नीचे बैठने लगी और पूंछा  “क्या मैं आपके आश्रय में रह सकती हूँ”|बरगद ने जबाब दिया “जहां इतने लोगों ने आश्रय लिया है तुम्हारे लिए क्या कमी है”|वह पेड़ के नीचे छाँव देख कर बैठ गई और प्रार्थना करने लगी  मेरी क्या भूल थी जो मुझे यह कष्ट दिया है|एक ने सलाह दी तुमसे कोई भूल हुई है
देवी की प्रार्थना करो और अपने सुहाग की भिक्षा मांगो |पूरा साल होने को आया जब बारहवी चतुर्थी आई उसने माँ के चरण पकड़ लिए और
कहा पहले मेरा  सुहाग लौटाओ तभी तुम्हारे पैर छोडूंगी |देवी का मन पसीजा और अपनी छोटी उंगली सेउसके पती को  छुआ |उसका पती राम राम कह कर उठ कर बैठ गया |वे दौनों  घर आए और अपने परिवार के साथ रहने लगे |
आशा