एक से समाज नहीं बनाता
होता आवश्यक एक समूह
समान आचार विचारों वाला
सामंजस्य आपस में हो
तभी स्वप्न समाज का
हो सकता है सफल |
यूँ तो एक समूह भीड़ का भी होता
पर सोच होता सब का अलग
कोई कुछ सोचता दूसरा कुछ और
सभी राग अपना अलापते तालमेल से दूर |
समाज के कुछ नियम होते
जिन्हें पालन करना होता अनिवार्य
तभी स्वस्थ्य समाज का होता निर्माण
मनुष्य है उसका अभिन्न अंग |
आशा